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________________ अर्थान्तरन्यासालङ्कारः २०७ समर्थनदर्शनाच । न हि तत्र स्त्रीणां विषादिनिर्मितत्वाभावप्रतिपादनं समर्थनसापेक्षं प्रसिद्धत्वात् । तस्मादुभयतो व्यभिचारात् समर्थनापेक्षसमर्थने काव्यलिङ्ग, तन्निरपेक्षसमर्थनेऽर्थान्तरन्यास इति न विभागः, किन्तु सामर्थ्यसमर्थकयोः सामान्यविशेषसम्बन्धेऽर्थान्तरन्यासः । तदितरसम्बन्धे काव्यलिङ्गमित्येव व्यवस्थाऽवधारणीया । प्रपश्चश्चित्रमीमांसायां द्रष्टव्यः । एवमप्रकृतेन प्रकृतसमर्थनमुदाहृतम् । प्रकृतेनाप्रकृतसमर्थनं यथा (कुमार० ५/३६ ) यदच्यते पार्वति ! पापवृत्तये न रूपमित्यव्यभिचारि तद्वचः। तथा हि ते शीलमुदारदर्शने ! तपस्विनामप्युपदेशतां गतम् ।। यथा वा दानं ददत्यपि जलैः सहसाधिरूढे को विद्यमानगतिरासितुमुत्सहेत ?। न्यास होता है, ठीक नहीं, क्योंकि इस पूर्वपक्षकृत नियम का व्यभिचार उपर बताया जा चुका है । (कई कायलिंग के स्थलों में भी समर्थनापेक्षत्व नहीं होता तथा निरपेक्ष समर्थन पाया जाता है, और कई अर्थान्तरन्यास के स्थलों में भी समर्थनापेक्षत्व अभीष्ट है)। इसलिए काव्यलिंग तथा अर्थान्तरन्यास के भेद का आधार यह है कि जहाँ समर्थनीय वाक्य तथा समर्थक वाक्य में परस्पर सामान्यविशेष संबंध हो, वहाँ अर्थान्तरन्यास होता है। इससे भिन्न प्रकार के संबंध होने पर कायलिंग अलंकार का विषय होता है। इस. विषय का विशद विवेचन चित्रमीमांसा में देखा जाना चाहिए। ___ अर्थान्तरन्यास में दो वाक्य होते हैं-एक सामर्थ्य वाक्य दूसरा समर्थक वाक्य । इसमें प्रथम वाक्य या तो विशेष होता है या सामान्य; इसी तरह दूसरा वाक्य भी उससे संबद्ध या तो सामान्य होता है या विशेष । यह सामर्थ्य वाक्य भी या तो प्रकृत.(वर्णनीय) होता है या अप्रकृत । ऊपर के कारिकार्धद्वय में अप्रकृत सामान्य-विशेष के द्वारा क्रमशः प्रकृत विशेष-सामान्य का समर्थन किया गया है। अब यहाँ प्रकृत रूप समर्थक वाक्य के द्वारा अप्रकृत रूप सामर्थ्यवाक्य के समर्थन के उदाहरण दिये जा रहे हैं, जैसे___ कुमारसम्भव के पंचमसर्ग में ब्रह्मचारी के वेष में आये शिव पार्वती से कह रहे हैं:'हे पार्वति, सौंदर्य दुष्टाचरण के लिए नहीं होता' (रूपवान् व्यक्ति दुष्टाचरण नहीं करते) यह उक्ति सर्वथा सत्य है । हे उदारदर्शन वाली पार्वति, तुम्हारा चरित्र इतनः पवित्र है कि वह तपस्वियों के लिए भी आदर्श हो गया है।' यहाँ प्रथम उक्ति सामर्थ्यवाक्य है, जिसमें सामान्य रूप अप्रकृत का विन्यास हुआ है। इसके समर्थन के लिए दूसरे (समर्थक) वाक्य में कवि ने विशेष रूप (पार्वतीसंबद्ध) प्रकृत का उपादान किया है। प्रकृत के द्वारा अप्रकृत के समर्थन का अन्य उदाहरण निम्न है। माघ के शिशुपालवध के पंचम सर्ग में रैवतक पर्वत पर डाले गये सेना के पड़ाव का वर्णन है । कोई हाथी नदी में मज्जन कर रहा है । जब वह पानी में घुसता है, तो उसके कपोल पर मदपान करते भौंरे उड़कर दूर भग जाते हैं। इसी वस्तु का वर्णन करते हुए कवि कह रहा है :
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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