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________________ १४८ यथा वा (वन्या. १।१३ ) - कुवलयानन्दः अनुरागवती संध्या दिवसस्तत्पुरःसरः । अहो दैवगतिश्चित्रा तथापि न समागमः ॥ ८३ ॥ ३६ असम्भवालङ्कारः असम्भवोऽर्थनिष्पत्तेर सम्भाव्यत्ववर्णनम् । को वेद गोपशिशुकः शैलमुत्पाटयेदिति ॥ ८४ ॥ यथा वा ( भल्लटशतके ) - अयं वारामेको निलय इति रत्नाकर इति श्रितोऽस्माभिस्तृष्णातरलितमनोभिर्जलनिधिः । क एवं जानीते निजकरपुटी कोटरगतं क्षणादेनं ताम्यत्तिमिमकरमापास्यति मुनिः ॥ ८४ ॥ ( दीपक का जलना तैल समाप्त होने का कारण है, पर स्मरदीप के जलने पर भी हृदय स्नेह का समाप्त न होना विशेषोक्ति है। यहां 'स्नेह' के श्लेष पर वह विशेषोक्ति आत है। अथवा जैसे यह संध्या (नायिका) अनुरागवती ( सांध्यकालीन ललाई से युक्त; प्रेम से युक्त ) है, साथ ही यह दिन (नायक) भी उसका पुरःसर (पुरोवर्ती, आज्ञाकारी ) है, इतना होने पर भी उनका मिलन नहीं हो पाता। भाग्य की गति बड़ी विचित्र है । ( नायिका में प्रेम का होना तथा नायक का आज्ञाकारी होना दोनों के मिलन रूप कार्य की उत्पत्ति का पुष्कल कारण है, किंतु यहां उन दोनों कारणों के होते हुए भी मिलन नहीं हो पाता, अतः विशेषोक्ति है। यहां भी 'अनुरागवती' तथा 'पुरःसरः' के लिष्ट प्रयोग पर ही विशेषोक्ति का चमत्कार भष्टत है। यहां समासोक्ति अलंकार' भी है ) । ३६. असंभव अलंकार ८४- - जहां किसी पदार्थ विशेष ( कार्यविशेष) की उत्पत्ति के विषय में असंभाव्यत्व का वर्णन किया जाय, वहाँ असंभव अलंकार होता है । जैसे, यह किसे पता था कि ग्वाले का लड़का पर्वत को उठा सकेगा । अथवा जैसे 'यह जल का एक मात्र स्थान है, रत्नों की खान है', ऐसा सोच कर ही तृष्णा के कारण चंचल मन से हमने इस समुद्र का आश्रय लिया है। यह किसे पता था कि कुलबुलाते ( परेशान ) मगरमच्छ वाले इस समुद्र को अपनी हथेली के खोखले भाग में रख कर मुनि अगस्त्य क्षण भर में ही पी जायँगे । ( प्रथम उदाहरण में पर्वत का उठाना और वह भी ग्वाले के लड़के के द्वारा अर्थ निष्पत्ति का असंभाव्यत्व वर्णन है, इसी तरह दूसरे उदाहरण में मुनि अगस्त्य के द्वारा विशाल तिमिमकरसंकुल समुद्र का चुल्लू में पी जाना भी असंभव रूप में वर्णित किया गया है, अतः यहां असंभव अलंकार है । )
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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