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________________ श्लेषालहारः - अत्र 'चतुर्भुज' इति विशेष्यं पुरुषार्थचतुष्टयदानसामोभिप्रायगर्भम् । यथा वा फणीन्द्रस्ते गुवान्वक्तुं, लिखितुं हैहयाधिपः। द्रष्टुमाखण्डलः शक्तः, काहमेष. क ते गुणाः ?॥ 'फणीन्द्रः' इत्यादिविशेष्यपदानि सहस्रवदनाद्यभिप्रायगर्भाणि ॥ ६३ ॥ २६ श्लेषालङ्कारः नानाथसंश्रयः श्लेषो वर्ष्यावर्योभयाश्रितः। सर्वदो माधवः पायात् स योगं गामदीधरत् ॥ ६४ ॥ अब्जेन त्वन्मुखं तुल्यं हरिणाहितसक्तिना। यहाँ कधि के द्वारा प्रयुक्त 'चतुर्भुजः' विशेष्य इस अभिप्राय से गर्भित है कि विष्णु चार हाथ वाले होने के कारण चारों पुरुषार्थों को देने में समर्थ हैं। अथवा जैसे कोई कवि किसी राजा से कह रहा है-हे राजन् , तुम्हारे गुणों का वर्णन करने में (सहस्त्रजिह्न) शेष ही समर्थ हैं, उनको लिखने में (सहस्रभुज) कार्तवीर्यार्जुन तथा देखने में (सहस्रनेत्र) इन्द्र समर्थ हैं। कहाँ तुच्छ मैं और कहाँ तुम्हारे इतने असंख्य गुण ? यहाँ 'फणीन्द्र' 'हैहयाधिप' तथा 'आखण्डल' शब्द सहस्रवदनत्व, सहस्रबाहुत्व तथा सहस्रनेत्रत्व की प्रतीति कराते हैं । अतः यहाँ तत्तत् विशेष्य का साभिप्राय प्रयोग है। इस उदाहरण में पहले वाले उदाहरण से यह भेद है कि वहाँ एक ही साभिप्राय विशेष्य का विन्यास है, यहाँ अनेक साभिप्राय विशेष्यों का। २६. श्लेष अलङ्कार ६४-जहाँ वर्ण्य, अवर्ण्य या वया॑वयं अनेक अर्थों से संबद्ध नानार्थक शब्दों का प्रयोग हो, वहाँ श्लेष अलकार होता है। (यह तीन प्रकार का होता है :-१-वर्यानेकविषय, २-अवानेकविषय, ३-वावानेकविषय-इन्हीं के क्रमशः उदाहरण हैं।) (१)समस्त वस्तुओं के देनेवाले माधव, तुम्हारी रक्षा करें जिन्होंने गोवर्धन पर्वत तथा पृथ्वी को धारण किया। (विष्णुपक्ष) उमा (पार्वती) के पति शिव सदा तुम्हारी रक्षा करें, जिन्होंने गंगा को (शिर पर) धारण किया।(शिवपा) टिप्पणी-इसी तरह का प्रकृतश्लेष इस पद्य में है : येन ध्वस्तमनोभवेन बलिजिस्कायः पुरस्त्रीकृतो, बसोवृत्तभुजंगहारवलयो गंगां च योऽधारयत् । यस्याहुः शशिमच्छिरोहर इति स्तुत्यं च नामामराः, पावास स्वयमन्धकक्षयकरस्त्वां सर्वदो माधवः ॥ (२) हे सुन्दरि, तुम्हारा मुख उस कमल (अब्ज) के समान है, जिसने सूर्य से प्रेम कर रक्खा है।(कमलपन) हे सुन्दरि, तुम्हारा मुख उस चन्द्रमा (अब्ज) के समान है, जिसने ( कलारूप में स्थित) हरिण से आसक्ति कर रक्खी है। (चन्द्रपक्ष) ७ कुव०
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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