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________________ ८६ कुवलयानन्दः ____ अत्र कन्दुकवृत्तान्ते वर्ण्यमाने 'व्यावलगत्कुचभारम्' इत्यादिक्रियाविशेषणसाम्याद्विपरीतरतासक्तनायिकावृत्तान्तः प्रतीयते । पूर्वत्र विशेषणानि श्लिष्टानि, इह साधारणानीति भेदः । सारूप्यादपि समासोक्तिदृश्यते । . यथा वा ( उत्तरराम० २।२७ ) पुरा यत्र स्रोतः पुलिनमधुना तत्र सरिता विपर्यासं यातो घनविरलभावः क्षितिरुहाम् | बहोदृष्टं कालादपरमिव मन्ये वनमिदं ___ निवेशः शैलानां तदिदमिति बुद्धिं द्रढयति ॥ अत्र वनवर्णने प्रस्तुते तत्सारूप्यात्कुटुम्बिषु धनसंतानादिसमृद्धयसमृद्धिविपर्यासं प्राप्तस्य तत्समाश्रयस्य ग्रामनगरादेर्वृत्तान्तः प्रतीयते । यहाँ कन्दुकवृत्तान्त प्रस्तुत है, किन्तु इस पद्य में प्रयुक्त 'व्यावलगत्कुचभारम्' इत्यादि क्रियाविशेषणों की समानता के कारण (क्योंकि विपरीतरति में भी स्तनादि का आन्दोलन, मुखकमल का स्वेदयुक्त होना, करप्रहार तथा श्वासाधिक्य पाया जाता है), विपरीत रतिक्रीडा में व्यस्त नायिका के (अप्रस्तुत) वृत्तान्त की व्यञ्जना होती है। पहले उदाहरण से इस उदाहरण में यह भेद है कि वहाँ विशेषण श्लिष्ट (द्वयर्थक) हैं, यहाँ वे साधारण हैं अर्थात् श्लेष के बिना ही प्रकृत तथा अप्रकृत वृत्तान्तों में अन्वित होते हैं। कभी-कभी सारूप्य या सादृश्य के आधार पर भी समासोक्ति का निबंधन पाया जाता है। जैसे- उत्तररामचरित के द्वितीय अंक में राम दण्डकारण्य की भूमि के विषय में कह रहे हैं:-जिस स्थान पर पहले नदी का सोता (प्रवाह) था, वहां अब नदीका तीर हो गया है, पेड़ों की सघनता और विरलता अदल बदल हो गई है (जहां पहले घने पेड़ थे, वहां अब छितरे पेड़ हैं और जहां पहले छितरे पेड़ थे, वहां अब घनापन है)। मैं इस वन को बड़े दिनों बाद देख रहा हूँ, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि यह वही पूर्वानुभूत वन न होकर कोई दूसरा ही वन है। इतना होने पर भी पर्वतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, अतः पर्वतों की स्थिति इस बात की पुष्टि करती है कि यह वही वन है ( दूसरा नहीं)। ___ यहां वनवर्णन प्रस्तुत है, इसके सारूप्य के कारण किसी ऐसे ग्राम या नगर का अप्रस्तुत वृत्तान्त प्रतीत हो रहा है, जहां के निवासी (कुटुम्बी) धन-संतान आदि समृद्धि तथा असमृद्धि की दृष्टि से बदल गये हैं । भाव यह है, वनवर्णन में प्रयुक्त व्यवहार के सारूप्य के कारण समृद्ध कुटुम्बियों की ऋद्धि का ह्रास तथा असमृद्ध कुटुम्बियो की ऋद्धि की वृद्धि होना-उनकी स्थिति का विपर्यास होना-व्यञ्जित होता है। टिप्पणी-इस पद्य में 'धनविरल तथा विपर्यास' इनके द्वारा सादृश्यप्रतीति हो रही है । यहाँ सादृश्यगर्भविशेषणोपस्थापितसादृश्यमूला समासोक्ति है। अतः यहाँ ऊपर की कारिका से विरोध नहीं है। ___ यदि कोई पूर्वपक्षी यह शंका करे कि यहाँ अप्रस्तुत वृत्तान्त में विशेषणसाम्य का व्यंग्यत्व नहीं पाया जाता, अतः इसमें समासोक्ति का लक्षण घटित नहीं होता, तो यह समाधान किया जा
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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