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________________ निदर्शनालङ्कारः www तथापि विशिष्टयोर्धर्मयोरैक्यारोपो वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शना । उपमानोपमेययोरन्यतरस्मिन्नन्यतरधर्मारोपः पदार्थवृत्तिनिदर्शनेतिव्यवस्थामाश्रित्यास्माभिरिहोदाहृतः । एवं च - ' त्वयि सति शिव ! दातर्यस्मद्भ्यर्थितानामितरमनुसरन्तो दर्शयन्तोऽर्थिमुद्राम् । चरमचरणपातैर्दुर्ग्रहं दोग्धुकामाः करभमनुसरामः कामधेनौ स्थितायाम् ॥' 'दोर्भ्यामन्धि तितीर्षन्तस्तुष्टुवुस्ते गुणार्णवम् ॥' वृत्तिनिदर्शना मानते हैं ), तथापि हमारे मत से वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शना वहाँ होती है, जहाँ उपमेय तथा उपमान दोनों के विशिष्ट धर्मों का बिम्बप्रतिबिम्बभाव निबद्ध किया जाय तथा पदार्थवृत्तिनिदर्शना वहाँ होगी, जहाँ उपमान तथा उपमेय में से किसी एक के धर्म का किसी दूसरे पर आरोप किया जाय । ( भाव यह है, जहाँ उपमेय के धर्म तथा उपमान के धर्म का पृथक-पृथक रूप से उपादान कर उनका बिम्बप्रतिबिम्बभाव निबद्ध किया गया हो, वहाँ वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शना होगी, जहाँ केवल एक ही के धर्म का उपादान कर या तो उपमेय पर उपमान के धर्म का आरोप किया गया हो या उपमान पर उपमेय ७३ धर्म का आरोप हो, वहाँ पदार्थवृत्तिनिदर्शना होगी। ) निदर्शना के दोनों भेदों के इस मानदण्ड को मानकर हमने 'वियोगे गौडनारीणां ' इत्यादि पद्य को पदार्थवृत्तिनिदर्शना के उदाहरण के रूप में उपन्यस्त किया है । ( यदि कोई पूर्वपक्षी इस भेद का मानदण्ड यह माने कि एकवाक्यगत निदर्शना पदार्थवृत्ति होती है, अनेकवाक्यगत ( वाक्यभेदगत ) निदर्शना वाक्यार्थवृत्ति, तो यह ठीक नहीं, इसलिए अप्पयदीक्षित ऐसे स्थल देते हैं, जहाँ वाक्यभेद न होने पर भी वाक्यार्थनिदर्शना पाई जाती है । ) हम कुछ उदाहरण ले लें, जिनमें वाक्यभेद न होने पर भी वाक्यार्थनिदर्शना पाई. जाती है : कोई भक्त शिव से कह रहा है : - ' है शिव, हमारी समस्त अभीप्सित वस्तुओं के दाता तुम्हारे होते हुए, अन्य तुच्छ देवादि का अनुसरण कर याचक बनते हुए हमलोग कामधेनु के होते हुए भी, पिछले चरणों के फटकारने से दुःख से वश में आने वाले ऊँट के बच्चे के पास दुहने की इच्छा से जाते हैं ।' भी ( यहाँ शिव को छोड़ कर अन्य देवादि की सेवा करने की क्रिया पर कामधेनु के होते दूध की इच्छा से करभ का अनुसरण करने की क्रिया का आरोप किया गया है । यद्यपि यहाँ एक ही वाक्य उपमेयवाक्य तथा उपमानवाक्य भिन्न-भिन्न नहीं हैं, तथापि उपमेय के विशिष्ट धर्म ( शिव के होने पर भी तुच्छ देवों से याचना करना) तथ उपमान के विशिष्ट धर्म ( कामधेनु के होते हुए भी दूध के लिए उष्ट्रशिशु का अनुसरण ) में ऐक्यारोप पाया जाता है, अतः यहाँ वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शना पाई जाती है । ) 'हे राजन्, 'अपने दोनों हाथों से समुद्र के तैरने की इच्छावाले उन लोगों ने तुम्हारे गुण-समुद्र का स्तवन किया ।' टिप्पणी- इसी का मालारूप निम्न पद्य में है : -: दोभ्यां तितीर्षति तरंगवती भुजंगमादातुमिच्छति करे हरिणांकबिम्बम् । मेरुं लिलंघयिषति ध्रुवमेव देव यस्ते गुणान् गदितुमुद्यममादधाति ॥
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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