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________________ ६२ कुवलयानन्दः १६ आवृत्तिदीपकालङ्कारः त्रिविधं दीपाकावृत्तौ भवेदावृत्तिदीपकम् । वर्षत्यम्बुदमालेयं वर्षत्येषा च शर्वरी ॥ ४९ ॥ उन्मीलन्ति कदम्बानि स्फुटन्ति कुटजोगमाः । माद्यन्ति चातकास्तृप्ता माद्यन्ति च शिखावलाः ॥ ५० ॥ दीपकस्यानेकोपकारार्थतया दीपस्थानीयस्य पदस्यार्थस्योभयोर्वाssवृत्तौ त्रिविधमावृत्तिदीपकम् । क्रमेणार्धत्रयेणोदाहरणानि दर्शितानि । १६. श्रावृत्तिदीपक अलंकार ४९-५०- -जहाँ दीपक की आवृत्ति हो, वहाँ आवृत्तिदीपक अलंकार होता है । (यह तीन प्रकार का होता है, पदावृत्तिदीपक, अर्थावृत्तिदीपक तथा उभयावृत्तिदीपक । इन्हीं के उदाहरण क्रमशः उपस्थित करते हैं । ) टिप्पणी- दण्डी ने भी आवृत्तिदीपक के तीन भेद माने हैं। -- अर्थावृत्तिः पदावृत्तिरुभयावृत्तिरित्यपि । दीपकस्थानमेवेष्टमलंकारत्रयं यथा ॥ ( काव्यादर्श २.११६ ) जैसे, (१) यह मेघपंक्ति बरस रही है, और यह रात्रि वर्ष के समान आचरण कर रही है ( किसी विरहिणी नायिका को प्रिय के वियोग के कारण रात वर्ष के समान लम्बी तथा दुःसह लग रही है । ) ( यह पदवृत्तिदीपक का उदाहरण है, यहाँ 'वर्षति' क्रिया रूप एक धर्म की पुनः आवृत्ति की गई है । यह आवृत्ति केवल 'वर्षति' पद की ही है, क्योंकि दोनों स्थानों पर उसका एक ही अर्थ नहीं है, प्रथम स्थान पर उसका अर्थ 'बरस रही है' है दूसरे स्थान पर 'वर्ष के समान आचरण कर रही है ।' ) (२) कदम्ब के फूल विकसित हो रहे हैं, कुटज की कलियाँ फूल रही हैं । (यह अर्थावृत्तिदीपक का उदाहरण है, यहाँ कदम्ब तथा कुटज रूप पदार्थों के साथ 'विकास' क्रियारूप एकधर्माभिसंबंध वर्णित किया गया है। इसमें कवि ने दोनों स्थानों पर विभिन्न पर्दो 'उन्मीलन्ति' तथा 'स्फुटन्ति' का प्रयोग किया है, अतः यह अर्थावृत्ति दीपक का उदाहरण है । ) (३) बादल को देखकर चातक तृप्त हो मस्त हो रहे हैं । खुश ( मस्त ) हो रहे हैं और मयूर भी ( यहाँ चातक तथा मयूर इन पदार्थों के साथ मोदक्रिया रूप एकधर्माभिसंबन्ध पाया जाता है, इसके लिए कवि ने उसी अर्थ में उसी पद की पुनरावृत्ति की है, अतः यह उभयावृत्तिदीपक का उदाहरण है । ) दीपक अलंकार में समानधर्मं अनेक पदार्थों का उपकार करता है, अतः वह दीप के समान होता है । इस प्रकार दीपक के समान एकधर्मबोधक पद या एकधर्मबोधक अर्थ या एकधर्मबोधक पदार्थोभय में से किसी एक की आवृत्ति होने पर आवृत्तिदीपक होगा इस प्रकार यह तीन प्रकार होगा । कारिकाभाग के तीन पद्यार्थों के द्वारा क्रमशः इनका उदाहरण दिया गया है I
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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