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________________ कुवलयानन्दः पतिं बुद्ध्वा, 'सखि ! ततः प्रबुद्धास्मी'त्यपूरयत् ।। ३० ।। कैतवापद्धतियक्ती व्याजा_निहतेः पदैः। निर्यान्ति स्मरनाराचाः कान्तादृक्पातकैतवात् ॥ ३१ ॥ अनासत्यत्वाभिधायिना, 'कैतव' पदेन 'नेमे कान्ताकटाक्षाः, किन्तु स्मरनाराचाः' इत्यपह्नवः प्रतीयते। यथा वा रिक्तेषु वारिकथया विपिनोदरेषु ___ मध्याह्नम्भितमहातपतापतमाः । स्कन्धान्तरोत्थितदवाग्निशिखाच्छलेन जिह्वां प्रसार्य तरवो जलमर्थयन्ते ।। ३१ ॥ १२ उत्प्रेक्षालङ्कारः संभावना स्यादुत्प्रेक्षा वस्तुहेतुफलात्मना । उक्तानुक्तास्पदाद्यात्र सिद्धाऽसिद्धास्पदे परे ॥ ३२ ॥ रही है। इसी बीच उसे पता लग जाता है कि वह सखी नहीं उसका पति है। उसे देखकर वह वास्तविकता का गोपन करने के लिए पूर्व अवस्था का गोपन कर अन्य अवस्था की व्याख्या करते हुए कहती है-'हे सखि, इतने में मैं जग गई'। भाव है, यह सारी बात मैंने स्वप्न में देखी थी। ___ यहाँ वास्तविक जाग्रत् अवस्था की बात को छिपाकर उसे स्वप्न की घटना बता दिया गया है, अतः अवस्थाभेद की योजना की गई है। ३१-जहाँ व्याज आदि पदों के द्वारा प्रस्तुत के निषेध की व्यंजना हो, वहाँ कैतवापहृति होती है। जैसे कामदेव के बाण प्रिया के कटाक्षपात के कैतव (व्याज) से निकल रहे हैं। ___ यहाँ कैतव' पद का प्रयोग किया गया है, जो असत्यता का वाचक है। इस पद के द्वारा 'ये प्रिया के कटाक्ष नहीं हैं, अपितु कामदेव के बाण हैं। इस प्रकार प्रस्तुत का निषेध व्यक्त हो रहा है। अथवा जैसे ग्रीष्म ऋतु का वर्णन है। वन में कहीं भी जल का नामनिशान न रहने पर (वन के मध्यभाग के पानी के वृत्तान्त से रिक्त होने पर) मध्याह्न में फैले हुए महान् सूर्यताप से तप्त वृक्ष अपनी शाखाओं के बीच से उठती हई दावाग्नि की ज्वाला के व्याज से अपनी जीभ फैलाकर पानी की याचना कर रहे हैं। ___ यहाँ 'दावाग्नि की ज्वाला के व्याज से' (दवाग्निशिखाच्छलेन) इसमें प्रयुक्त 'छल' पद से यह प्रतीति हो रही है कि 'यह दवाग्निज्वाला नहीं है, अपितु वृत्तों की जीभ है।' इस प्रकार यहाँ कैतवापह्नति है। १२. उत्प्रेक्षा अलंकार ३२-३५-जहाँ अप्रकृत के साथ प्रकृत की वस्तु, हेतु तथा फल रूप सम्भावना की जाय, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इनमें प्रथम (वस्तूत्प्रेक्षा) उक्ता तथा अनुक्ता
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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