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________________ दादासाहबके आनेपर मेरे तीनों व्याख्यान हों। इस निर्णय के अनुसार वे व्याख्यान अक्टूबर में दिए गये, पर दूसरा और तीसरा व्याख्यान लिखानेका कार्य बाकी था। अन्ततः वह भी ११५५ के दिसम्बरमें पूरा हुआ। तीनों व्याख्यानों की प्रेसकॉपी तो तैयार हुई, पर पादटिप्पण और दूसरे उद्धरणोंका कार्य तो अवशिष्ट था ही। मेरे निकटके मित्र और सहचारी तथा बनारस विश्वविद्यालयमें जैन ज्ञानपीठके प्राध्यापक श्री दलसुखभाई मालवणियाके सहयोगके बिना वह काम पूरा करना मेरे लिए कुछ अधिक कठिन था । वह कार्य भी ग्रीष्मावकाशमें जब वह अहमदाबाद आये तब पूर्ण हुआ। अब, जो रूप तैयार हुआ वह पाठकोंके समक्ष उपस्थित है। .. गुजरात विद्यासभाके स्वर्गीय अध्यक्ष माननीय दादासाहब और श्रीभो० जे० विद्याभवनके बहुश्रुत संचालक श्री रसिकभाई परीख इन दोनोंका मैं इस स्थानपर हार्दिक आभार मानता हूँ। यदि उनका मेरे प्रति सहज सद्भाव और व्याख्यान देनेका श्राग्रह न होता तो मैं शायद ही इस श्रवण-मनन-निदिध्यासनकी भूमिकामेंसे गुजरकर जो कुछ अल्प-स्वरूप फलित हुआ है वह गुजराती भाषाद्वारा गुजरातके समक्ष सर्वप्रथम रख पाता। इन व्याख्यानों की तैयारीमें मुझे अनेक सहृदय मित्रोंने अनेक भाँतिकी सुविधायें प्रदान की हैं। उन सबका नामनिर्देश किए बिना ही मैं आभार मानता हूँ। हिन्दी अनुवाद श्री शांतिलाल मणिलाल जैन B.A. (Hon.), जैनदर्शनाचार्य ने किया है । वह अब हिन्दी पाठकोंके समक्ष रखा जाता है -सुखलाल
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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