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अध्यात्मविचारणा विशिष्ट पंथ चलाते थे। जैन आगमोंमें' भी ऐसे भूतसंघातवादियोंका उल्लेख है। महाभारतमें आया हुआ ऐसा वर्णन कितना पुराना है यह नहीं कहा जा सकता, फिर भी छान्दोग्य' जैसे प्राचीन औपनिषद्भागमें वर्णित इन्द्र-विरोचनकी आख्यायिकामें विरोचनकी मान्यताके रूपमें देहात्मवादका सूचन है ही।
कपिल, पार्श्वनाथ, बुद्ध, महावीर, याज्ञवल्क्य-जैसे मोक्षवादी साधकोंकी साधना-भूमिका आत्मवादपर ही प्रतिष्ठित थी । अतएव इन साधकोंकी तपश्चर्या, विचारणा एवं जीवनसरणीका ऐसा गहरा प्रभाव लोगोंपर पड़ा और वह फैलता भी गया कि उसकी वजहसे धीरे-धीरे भूतसंघातवाद या देहात्मवाद गौण एवं अप्रतिष्ठित होता गया। मोक्षवादी दर्शनोंके पुरस्कर्ता प्रत्येक सूत्रकारने अपनी-अपनी कृतिमें पूर्वपक्षके तौरपर भूतसंघातवाद अथवा देहात्मवादका निर्देश करके उसका संक्षिप्त या विस्तृत खण्डन किया ही है। उन सूत्रकारोंके समयमें उनके समक्ष ऐसे भूतसंघातवादी धर्मपंथ जीवित थे या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता, पर उन सब सूत्रकारोंकी एकसी भूतसंघातवादकी खण्डन
१. सूत्रकृतांग १. १. ७-८, और रायपसेणीयसुत्त । २. नाऽयं लोकोऽस्ति न पर इति व्यवसितो जनः । नाऽलं गन्तुमिहाश्वासं नास्तिक्यभयशंकितैः ।।
-महाभारत, शान्तिपर्वः प्रापद्धर्मपर्व ३. १४
( मद्रास संस्करण, १६३६) FHopkins : The Great Epic of India, p. 86-90 ३. छान्दोग्योपनिषद् ८.८ तथा गणधरवादकी प्रस्तावना पृ. ७४
४. न्यायसूत्र ३.१.१-२७; वैशेषिकदर्शन ३.१.२, ८.१.२.; प्रशस्तपादभाष्यगत प्रात्मप्रकरण ।