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अनुक्रमणिका
१४१ न्यायसूत्र १२ (पा. टि.), २५ (पा. परिणामी -जीवतत्ववादी ३७,
टि.), ७० (पा. टि.), ९४,६७, तत्त्वद्वैतवादी २६;-नित्य ४२, १०० (पा. टि.)
४५-६,६७; नित्यता ४६,८०पटिसंभिदा १५ (पा. टि.) ४० १; परिणामि-नित्यता और (पा. टि.)
कूटस्थ नित्यताके बीच अन्तर पतंजलि १४, ६६, ९८
६४, और सन्ततिनित्यताके परब्रह्म ५३,५५,८५-६,१०७;-वाद साथ साम्य ४७
परीषहजय १११ परमदेव ५०
पर्याय ४७ परमात्मा ५०-५५,६०,८६;-और | पाणिनि १०-१
जीवात्माके सम्बन्धको चर्चा पाश्वनाथ १२, ७८,१०२ ६० से;--और परब्रह्मकी | पिटक ५, ११, ४२, ६१, १०२ मान्यता ५५;--जैनसम्मतकी पितृ-ऋण ७ (पा. टि.) विवर्तवादी ब्रह्मवाद के साथ | पुग्गल ४०, देखो 'आत्मतत्व' तुलना ५७ ;-जीव और जगत् पुद्गल-आत्मतत्त्वका पर्याय १५; से अभिन्न रूपमें ५२;-के -नैराम्यवादी ७५ पर्याय न्याय, वैशेषिक, वैष्णव- | पुनर्जन्म ६, ६, १०, २४, २५, २७, परम्परा, सेश्वर सांख्य और । ३४, ४०, ६५, ६७; की प्रारंयोगमें ५३.४; की ध्यानो- भिक कल्पना २४-२५ पासनाका विकास ५३.५५;- पुनर्वसु १६ का बौद्ध में स्वरूप ६५.६७;- पुरिस ४०; देखो 'अात्मतत्त्व' का जैन-बौद्ध परम्परामें अर्थ
पुरुष २४-५, ६७, ७०-२;५६.६०;-अथवा ईश्वरकी श्रात्मतत्त्वका पर्याय १५;स्वरूपमान्यता भेदमेंसे अभेद कूटस्थता ४५;-तत्त्व ४३, रष्टिकी ओर विकास ५१.३;- निर्गुण ७४;--बहुत्ववाद ३० विषयक भिन्न-भिन्न दर्शनोंकी | पुरुषसूक्त ८ मान्यताका सार ६०-१ | पुरुषाद्वैत ४८