________________
१३८
गुण-गुणी ३६; - का न्याय-वैशे- | चेतनाद्वैत ३१ ; - वाद
षिकर्मे भेदसम्बन्ध ३९, ७३
१११
१४
१६
गुप्ति
चतुर्व्यूह
चरक १६, ३३; – संहिता (पा. टि. ); - में सांख्य १५ (पा. टि. )
चरम देह
चारित्र
२४ तत्ववाला
६३
११
६७
चारित्रमोह चार्वाक १३; - परम्परा १३ ( पा. टि. ) चिकित्साशास्त्र ६२-३; देखो 'श्राध्यात्मिक साधना'
चित्त १४, ४०, ११६, ११६-२०
- कुशल ११२; - तत्त्व १००; - के विक्षेप आदि अन्तराय
----
दूर करने के उपाय ११६;की क्षिप्त आदि भूमिकाएँ १०८; - बहिर्मुख ११६ ;- का वशी
--
श्रध्यात्मविचारणा
३१
जड़-चैतन्यवादी
२१
जप १०२; - या प्रणिधान ११०
जयराशिभट्ट १३ ( पा. टि. )
ज़रथोत्री
ज़रथोस्त्रियन गाथा
९०.
जाति ४५ ; - कूटस्थता ४५;नित्यता न्याय-वैशेषिकसम्मत
करण १३६;- -या सत्त्व अव्याकृत ( बौद्ध में ) ५८ – विलय ११०;–वृत्तिनिरोध
१०६
चेतन १४, १८, २२, २३, १२०; - तत्व के स्वतंत्र अस्तित्वकी युक्तियाँ १०० - १ - की पाँच भूमिकाएँ अन्न, प्राण आदि १०१; – वाद, कूटस्थ और जैनदर्शन परिणामी
३८
४५.
जीव
१४, ४०
जीव-जीव तत्त्वद्वैतवाद ३६
तत्त्ववाद, प्रकृतिजन्य और ३५. स्वतः सिद्ध जीवतत्त्व ६८, ७४; - स्वतः सिद्ध ३६
जीवन्मुक्त ६२, ६३, १११, १३०; - जैनसम्मत सयोगी केवलीके साथ तुलना १११ - २; के पर्याय जैन, बौद्ध और योग परंपरा में
६३
६२
जीवन्मुक्ति जीवन्मुक्तिविवेक
१०५.
जीवाजीवाभिगम १८ ( पा. टि. ) जीवात्मा-परमात्मा के
सम्बन्धकी
चर्चा ६१ से
४१-४७, ७८; — में मोक्षस्वरूप ८१-८३