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अनुक्रमणिका
३२; - के उत्थान एवं स्थापनाके पीछे रही हुई लोकसंग्रहकी दृष्टि १३० ; - गीता में समर्थन
१३१
कर्ममीमांसा
कषाय ९८, ११०
काशिकावृत्ति १० ( पा. टि. )
६६
कीथ
कुशल, कर्म ४०, चित्त ११२ ;जीवनमुक्त का पर्याय योग में ६३ कूटस्थ २३, ३७; - चैतन्यवादी ३७ ;
तत्त्वद्वैतवादी २८ - नित्य ६८, -नित्यता ७०,७२-७४,८२ ; ६७; नित्यवाद और परिणामिनित्यवाद में अन्तर ६५; - पुरुषवाद ६८, वादी ४३
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केवलाद्वैत ३३,६०,८१,१२८; - द्वैती ७८, १२६; वादी ६७ केवलज्ञान १२५,१३०; देखो 'विवेकख्याति' । - जैनसम्मत तथा पातंजलसम्मत प्रकृति-पुरुष के भेदज्ञान के साथ तुलना १०६ कौशल, बौद्धसम्मत ११५ क्रमप्रधान देववाद ५५ क्रियायोग १०५, १०६,१११
क्लिष्टवृत्ति १०७, १५०; – पातं -
१३७
जलसम्मतकी जैन सकषाय योग अथवा श्रावके साथ तुलना
११०
क्लेश
६६, १०७, १०६, ११५, १२२, १२५, १२७ – योगसम्मत ६६, ११०; - की साख्यगत पाँच विपर्यय के साथ
तुलना ६६; - दोष ११४ ;नाश, विद्यासे १२२; - की योगशास्त्र में चार अवस्था १२५;की जैनसम्मत चार कर्म और बौद्धसम्मत क्लेश के साथ तुलना १२५-६; - का अविद्या के साथ अनिवार्य सम्बन्ध १२२; - का पर्याय चरित्रमोह या कषाय, जैनमें ६७; - संस्कार क्लेशावरण
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१०८
१२७
४६
क्षणवादी ८२ - वादिता क्षणिकवाद ४७; - वादी ४२, ४७ क्षिप्त १०८; देखो 'चित्त' क्षेत्रज्ञ
२३
गुणधरवाद ६८ ( पा. टि. ),
( पा. टि. ), ९८ ( पा. टि ) गाँधीजी १३२ गीता २५ (पा. टि.), २६ (पा. टि. ) ६७, ७४ ( पा. टि. ), ६४, ९७, १०२, १०४, १०६ - कर्ममार्गका समर्थन १३२