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छंदीनुशासन ढकारए, दीहरसासदड्ढसहिकरयलघुअविअणारविंदए, तिणयणतइअनेत्तपत्तान, लजालकरालचंदए, विरहम्मि तुज्झ एरिसे, तह झीणा कुवलयछ सदुहंगिआ, जह सण्हलक्खूणणयं, तीए अंगम्मि सिक्खइ अगंगओ।। ८७ ० अन्यथापि।। अन्यैरपि छन्दोभिर्द्वन्द्वितैर्द्विभङ्गी अन्यैरुक्ता तत्र गाथाया भद्रिकाया योगे यथा "उध्धाइअझंझानिलझप्पझंपणपडंतविडवोहे, अविरलबहलझलकंतविज्जुलावलयललक्के, सरहसरडंतदद्दरे कणंतमोरे पडतजलनिवहए, गज्जतमेहमंडले को जिअइ विणा पिएण पाउसम्मि' २ वस्तुवदनस्य कर्पूरेण यथा “निकंदलकयकच्छ नलिणिवज्जिअ कय सरसरि, निच्चंदणु किओ मलओ तुहिणवजिओ किओ हिमगिरि, निप्पलवकिअकरि पयत्त कंकेल्लिविडविसय, पत्तचत्त कय बालकयलि, अकुसुम कय तरुलय सिसिरोवयारकिहिं, परियणिहिं णिम्मुत्तावलि कय भुवण, तो विहु न तीइ तुह विरहभरि खसइ दाहदारुणविअण" ३ कुङ्कुमेन यथा “गयणुप्परि कि न चहि कि नरि विक्खरहिं दिसिहि वसु, भुवणत्तयसंतावु हरहि कि न किरवि सुहारसु, अंधयारु कि न दलहिं पयडि उज्जोउ गहिउल्लओ, किन धरिज्जहिं देवि सिरहं सई हरि सोहिल्लओ, कि न तणउ होहि रयणारहु होहि किं न सिरिभायरु, तुवि चंद निअवि मुहु गोरिअहि कुवि न करइ तुह आयरु' ४ रासावलयस्य कर्परेण यथा “परहुअपंचमसवणसभय मन्न स किर, तिंभणि भणइ न किं पि मुद्धकलहंसगिर, चंदु न दिक्खण सक्कइ जं सा ससिवयणि, दप्पणि मुहु न पलोअइ तिमणि मयनयणि, वइरिउ मणि मन्नवि कुसुमसरु खणि खणि सा बहु उत्तसइ, अच्छरिउ रूवनिहि कुसुमसरु तुह दसणु जं अहिलसइ" ५ कुङ्कुमेन यथा “जइ अज्झलक्कहिं नयणदीहनयणि अहिखणु, केअइकुसुमदलम्मि भसलु विलसइ तजणु, जइ तीए मुहि हावि मंदु हासउ चउ(ड)इ । ता जणु हीरयपउमरायसंचओ झडइ, जइ तीए महुरमिउभासिणीहि वयणगुंफ निसुनिज्जइ, ताबह करेप्पि जणु अमयरसु कण्णपण्णपुडि पिज्जइ” ६ वस्तुवदनकरा