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________________ wwwwwwwwन पत्रहारत्वwww प्रकाशित किया, जिसका सामायिक एवं प्रतिक्रमण सीखने वाले को बहुत लाभ हुआ। विज्ञान और जैनदर्शन से सम्बन्धित डॉ. जीवराज जैन के आखेख बहुत महत्वपूर्ण है, यथा-उच्चार पासवण की समस्या, धोवन के लिए अनुपयुक्त पदार्थ, जैन ब्रह्माण्ड और आधुनिक ब्रह्माण्ड की तुलनात्मक समीक्षा आदि। जैनदर्शन के अग्रणी विद्वान ऋषिकल्प प्रो. सागरमल जैन के लेख भी निरन्तर प्रकाशित होते हैं। वे लेख जैन धर्म-दर्शन के विविध आयामों को दृष्टिपथ में लाने वाले होते हैं। श्री धर्मचन्द जैन के 'आओ मिलकर ज्ञान बढाएँ' शीर्षक से 70 से अधिक लेखों की सीरिज प्रकाशित हो चुकी है, जो थोकडों का तलस्पर्शी ज्ञान सीखना चाहते हैं उन पाठकों के लिए वह कुंजी है। करुणा और अनुकम्पा, मच्छर की यतना, मृदुवाणी, सहनशीलता, माइक्रोवेव से बचें आदि जीवन-व्यवहार से सम्बन्धित लेखों से हर कोई पत्रिका को पढने के लिए लालायित होता है। नियमित पाठकों के लिए पत्रस्तम्भ की सीरिज एवं उपन्यास का प्रकाशन कया जाता रहा है। नूतन साहित्य द्वारा नवीन प्रकाशित पुस्तकों की शीघ्र जानकारी प्राप्त हो जाती है। युवक संघ और श्राविका मण्डल अपनी प्रवृत्तियों के सुगम संचालन के लिए इसे ही अपना माध्यम बनाते है। जिनवाणी पत्रिका का सम्पादकीय बहुत ही मार्मिक, रोचक, विविध जानकारियों से परिपूर्ण, आध्यात्मिक, व्यावारिक, प्रासंगिक, सामाजिक जैसी कई विशेषताओं को समेटे हुए प्रमावी सम्प्रेषण के साथ पाठकों के हृदय में स्थित हो जाता है। कतिपय शीर्षक यहाँ उद्धत है - लक्ष्मी की पूजा, कीर्ति का सुख, साधु-श्रावक करुं प्रणाम, सद्गुणों की पूजा, प्रजातान्त्रिक मल्य, क्षमाशीलता और कषाय-विजय, संघ एकता, जैन एकता, आचार्य हस्ती की दृष्टि में ज्ञान की महिमा, आचार शुद्धि के प्रेरक : आचार्य श्री हीरा, धार्मिक पाठशालाओं की आवश्यकता, धर्म की भयावहता, बालदीक्षा का औचित्य, संथारा आदि। नये लेखकों को जोड़ने का प्रयास भी सम्पादक का रहत. है। इन जुडे लेखकों का नाम इस प्रकार है - श्रीमती नीलू डागा, प्रो. जे आर. भट्टाचार्य, '२००
SR No.023469
Book TitleJain Patrakaratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherVeer Tattva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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