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नैन पत्रारत्व
लघुलेख हैं।
अमृत के अन्तर्गत १. संतुलन २. समझ ३. सरलता ४. संतोष ५. सजगता ६. समर्पण ७. समत्व ८. सम्यकत्व ९. साहस १०. सहजता ११ संघर्ष १२. स्वाध्याय १३. जमीर १४. कृतज्ञता
१४ लघुलेख हैं। चुनौतियाँ के अन्तर्गत - १ मोह २. दिखावा ३. मन ४. तन ५.
धन ६. चंचलता ७. धन्धा ८. आधुनिकता ९. तृष्णा १०. स्वाद ११. भ्रान्ति १२. अज्ञान १२ लघुलेख हैं।
ये सारे निबन्ध जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। व्यक्ति के भीतरी अन्धेरे को कम कर उसे रोशनी से जोड़ते हैं। उसकी गुणवत्ता को समृद्ध करते हैं। इन निबन्धों में एक स्वस्थ, रचनात्मक और मानवीय जीवन-दर्शन धड़क रहा है। ज़हर एवं अमृत के अन्तर्गत जो लघुनिबन्ध संकलित हैं वे मन की शक्ति, निराकुलता एवं सौहार्द तथा व्यक्ति को सकारात्मक दृष्टि प्रदान करते हैं। गलतफहमी के सम्बन्ध में वे लिखते हैं- 'दुनियाभर की गलतफहमीयाँ स्वार्थों और पूर्वाग्रहों के कारण जन्म लेती हैं, क्योंकि जहाँ जब हमारी स्वार्थसिद्धि होती है, वहाँ / तब हम स्निग्ध- मधुर हो जातें हैं, और जहाँ तनिक भी टकराव होता है, वहाँ दुर्भावनाओं की सारी खामियाँ खुल जाती हैं और क्रोध, उत्तेजन, प्रतिकार, छीन - झपट के सर्व रेंगन लगते हैं; किन्तु जिनकी समझ सम्यक् और संतुलित है गलतफहमी उनके सन्मुख आपोआप निस्तेज और बेअसर होता जाती है ।'
निन्दक के सम्बन्ध में उनका मन्तव्य है- 'निन्दक एक ऐसा उपकारी मित्र है, जो बिना किसी शुल्क के आपके तन-मन को निर्मल बनाता है, बना सकता है; इसीलिए संत कबीर ने 'निन्दक कियो रखिये, आँगन कुटी छवाय' कहा है। आगे वे लिखते हैं- उसे गुण कभी दिखते नहीं। निन्दा की कुटेव के कारण ही वह न तो कभी चैन से बैठता है और न ही निष्ठापूर्वक कोई काम कर पाता है । रात-दिन उसे ऐसे साथी की जरुरत होती है, जो उससे बुराई सुनता रहे और उसकी वाहवाही करता रहे। । इन वाक्यों से विदित होता है कि डॉ. नेमीचन्दजी मानवीय स्वभाव
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