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________________ नैन पत्रारत्व नामक संस्था का इन्दौर में शुभारम्भ किया तथा इन्दौर से ही इस संस्था के माध्यम से मई 1971 में 'तीर्थंकर' मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। वे जुम्कास प्रकृति के व्यक्ति थे। संघर्षशीलता में उन्हें आनन्द आता था। स्वतन्त्र रुप से अपने बल पर बिना विज्ञापनों के किसी पत्रिका का नियमित प्रकाशन अत्यन्त कठिन कार्य होता है, किन्तु इस कार्य को सही ढंग से सम्पन्न करने में वे सफल रहें। पत्रिका के माध्यम से अर्थार्जन करना उनका लक्ष्य नहीं रहा। पत्रिका को उन्होंने समाज को सही दिशा देने का माध्यम बनाया। तीर्थंकर पत्रिका उनके जीवन का मिशन थी, उन्हीं के शब्दों में- " तीर्थंकर मेरा जीवन-मिशन है, अतः जब भी में उसे सम्पादित करता हूँ, उसमे अपनी सांस-सांस उंडेल देने की भरपूर कोशिश करता हूँ ।" कितनी तन्मयता एवं निष्ठा से सम्पादन करते होंगे वे तीर्थंकर पत्रिका का, इसी से अनुमान लगाया जा सकता है। मात्र ३२ पृष्ठों की लघुकाय पत्रिका रुपी गागर में वे विचारोंका सागर छउंडेल देने के लिए प्रयत्नशीन रहते थे। उन्होंने जी-जान लगाकर सम्पादन किया। पाठकों को नयी सामग्री परोसना उनका लक्ष्य रहता था। जुलाई 2001 में दिवंगत होने तब तक उन्होंने 30 वर्ष की अवधि में तीर्थंकर के 353 अंक तथा 50 विशेषांक सम्पादित किए। विशेषांकों में उन्होंने एक-एक विषय पर जो मंथन प्रस्तुत किया वह प्रभूत चिन्तन का अवसर प्रदान करता है। प्रमुख विशेषांक हैं - सामाजिक, प्रतिक्रमण, भक्तामर स्तोत्र, जैन पत्रकारिता, जैन भूगोल, रसायनविज्ञान, भौतिकविज्ञान, श्री राजेन्द्रसूरि, मृत्युन्जय आदि हैं। तीर्थंकर पत्रिका का आवरणपृष्ठ भी विचार-मंथन से आप्लावित रहता है। उस पर उनके सम्पादकीय का चयनित अंश अथवा उनके विशिष्ट आलेख का अंश प्रकाशित होता रहा है। प्रथम से अन्तिम पृष्ठ तक पाठ्य सामग्री इस तरह सजी हुई रहती है कि वह चित्त को आकर्षित किए बिना नहीं रहती । कागज का व्यर्थ विनाश न हो, उसका वे संदेश नहीं देते थे, अपितु स्वयं भी उसका अक्षरहः पालन करते थे; यही कारण है कि छोटे-छोटे अक्षरों में भी उन्हें विचारों के मोती बिखेरना आता ૧૩૦
SR No.023469
Book TitleJain Patrakaratva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherVeer Tattva Prakashak Mandal
Publication Year2014
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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