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________________ ६४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण उपमा __'काव्यादर्श' में उपमा का जो सामान्य लक्षण दिया गया है, वह भरत और भामह के उपमा-लक्षण से मिलता-जुलता है। दण्डी के अनुसार काव्य में जहाँ उपमान और उपमेय में गुण, क्रिया आदि धर्म के द्वारा स्फुट साधर्म्य का बोध होता है वहाँ उपमा अलङ्कार होता है । ' दोनों में साम्य की प्रतीति ही उपमा है। इस प्रकार पूर्वाचार्यों की तरह दण्डो भी काव्यगत चमत्कारपूर्ण सादृश्य में उपमा अलङ्कार का सद्भाव स्वीकार करते हैं। उन्होंने उपमा के निम्नलिखित भेदों का सोदाहरण उल्लेख किया है :धर्मोपमा, वस्तूपमा, विपर्यासोपमा, अन्योन्योपमा, नियमोपमा, अनियमोपमा,, समुच्चयोपमा, अतिशयोपमा, उत्प्रेक्षितोपमा, अद्भुतोपमा, मोहोपमा, संशयोपमा, निर्णयोपमा, श्लेषोपमा, समानोपमा, निन्दोपमा, प्रशंसोपमा, आचिख्यासोपमा, विरोधोपमा, प्रतिषेधोपमा, चटूपमा, तत्त्वाख्यानोपमा, असाधारणोपमा, अभूतोपमा, असम्भावितोपमा, बहूपमा, विक्रियोपमा, मालोपमा, वाक्यार्थोपमा ( एकेव शब्द-निबन्धना तथा अनेकेव शब्द-निबन्धना; दो प्रकार ), प्रतिवस्तूपमा, तुल्ययोगोपमा तथा हेतूपमा । ___ इनमें से निन्दोपमा तथा प्रशंसोपमा भरत के एतत्संज्ञक उपमा-भेदों से अभिन्न हैं। अद्भुतोपमा, अभूतोपमा, असम्भावितोपमा तथा विक्रियोपमा की कल्पना का आधार भरत की उपमा का कल्पिता भेद है, जिसमें उपमान कल्पित या असिद्ध होता है। दण्डी के उक्त चार उपमा-प्रकारों में उपमान कल्पित ही हुआ करते हैं। उदाहरणार्थ-दण्डी के अनुसार इस कथन में"ऐ सुन्दरी ! यदि कमल आपूर्णित नेत्र से युक्त हो जाय तो वह तुम्हारी मुख-छवि की समता कर सकता है"-अद्भुतोपमा अलङ्कार होगा। यह कथन- "तुम्हारा मुख संसार के सभी कमलों के एकत्रीभूत प्रभा-सार के समान सुशोभित है"-उनके अनुसार अभूतोपमा का उदाहरण है । निम्नलिखित उक्ति में—''इस मुख से कठोर वाणी, विधुमण्डल से विष तथा चन्दन से आग निकलने के समान है"-दण्डी असम्भव कथन के कारण असम्भावितोपमा मानते हैं । “ऐ तन्वङ्गी ! तुम्हारा मुख चन्द्रमण्डल से उत्कीर्ण तथा कमल-मध्य १. यथाकथञ्चित् सादृश्यं यत्रोद्भूतं प्रतीयते । उपमा नाम सा ... ... ..." -दण्डी, काव्याद० २,१४ २. द्रष्टव्य-वही, २, १५-५०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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