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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ ६५ से उद्धृत के समान है", इस कथन को दण्डी विक्रियोपमा का उदाहरण मानते हैं । उक्त उदाहरणों पर विचार करने से स्पष्ट हो जाता है कि उनमें उपमान असिद्ध या एकान्त - कल्पित हैं । उपमानभूत कमल में आघूर्णित नयन की कल्पना, कमल की प्रभा के सार - समुच्चय से मुख का निर्मित होना, विधुमण्डल से विष तथा चन्दन से अग्नि का निःसृत होना, मुख का चन्द्रमण्डल से उत्कीर्ण तथा पद्मगर्भ से उद्धृत होना; ये सब असिद्ध कथन हैं । इस प्रकार उपरि-विवेचित चार अलङ्कार भरत की कल्पितोपमा-धारणा के आधार पर कल्पित हैं । अद्भुतोपमा से मिलती-जुलती धारणा भामह ने अतिशयोक्ति के एक उदाहरण में व्यक्त की है । १ भामह के 'कव्यालङ्कार' में निर्दिष्ट आचिख्यासोपमा तथा मालोपमा नामक उपमा-भेदों का भी उल्लेख दण्डी के उपमा - प्रकारों में है । उनके स्वरूप के सम्बन्ध में दण्डी की धारणा भामह की धारणा से अभिन्न है । यह कहा जा चुका है कि दण्डी ने भामह के प्रतिवस्तूपमा अलङ्कार का भी उल्लेख उपमा-भेद के रूप में किया है । उनके स्वतन्त्र अलङ्कार अनन्वय तथा ससन्देह को दण्डी ने उपमा के ही भेदों में अन्तर्भुक्त मान लिया है | उक्त उपमाभेदों के अतिरिक्त जो नवीन भेद 'काव्यादर्श' में परिगणित हैं, उनके उद्भव का परीक्षण प्रसङ्गानुकूल यहाँ अपेक्षित है । धर्मोपमा तथा वस्तूपमाः– उपमा के चार अङ्ग हैं—उपमेय, उपमान, साधारण धर्मं तथा वाचक शब्द । साधारण धर्म कहीं उक्त हो सकता है कहीं अनुक्त । अनुक्त होने पर धर्म प्रतीयमान होता है । इसमें धर्मी वाच्य होता है, धर्म प्रतीयमान । इस प्रकार धर्म के वाच्य होने पर धर्मोपमा तथा उसके अनुपात्त या प्रतीयमान होने पर वस्तूपमा, ये दो उपमा-भेद हो जाते हैं । 3 भरत के किञ्चित् सदृशी उपमा-भेद में वस्तूपमा धारणा का बीज निहित था । किञ्चित् सदृशी उपमा के उदाहरण के व्याख्यान के क्रम में अभिनव गुप्त ने यह मान्यता व्यक्त की है कि इसमें सादृश्य का बोधक पद स्फुटतया उक्त नहीं होता, १. अपां यदि त्वक् शिथिला च्युता स्यात् फणिनामिव । तदा शुक्लांशुकानि स्युरङ्ग ेष्वम्भसि योषिताम् ॥ — भामह, काव्यालं० २, ८३ २. अनन्वय - ससन्देहावुपमा स्वेव दर्शितो । —दण्डी, काव्याद० २, ३५८ ३. ...इति धर्मोपमा साक्षात् तुल्यधर्मप्रदर्शनात् । तथा ..... इयं प्रतीयमानैकधर्मा वस्तूपमैव सा ।।१ही २, १५-१६ ५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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