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________________ अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण (२) एक पाद के मध्यगत, (३) एकाद के अन्तगत, (४) दो पादों के आदिगत, (५) दो पदों के मध्यगत, (६) दोनादों के अन्तंगत, (७) तीन पादों के आदिगत, (८) तीनपादों के मध्यगत, (६) तीन पादों के अन्तगत, (१०) चार पदों के आदिगत, (११) चार पदों के मध्यगत तथा (१२) चार पादों के अन्तगत । ये बारह प्रकार अमिश्र यमक के हैं। मिश्र यमक के ग्यारह प्रकार माने जा सकते हैं। वर्णसमुदाय के अभ्यास में स्थानों के मिश्रण की दृष्टि से मुख्य पाँच भेद माने गये हैं :-(क) आदि मध्यान्त, (ख) मध्यान्त, (ग) मध्यादि, (घ) आद्यन्त तथा (ङ) सब । इनमें से आदिमध्यान्त का प्रथम तथा द्वितीय पाद में, प्रथम तथा तृतीय में एवं प्रथम तथा चतुर्थ में मिश्र आवृत्ति की दृष्टि से तीन भेद; मध्यान्त के-द्वितीय-तृतीय, द्वितीय-चतुर्थ तथा तृतीय-चतुर्थ पादगत भेद से तीन प्रकार; मध्यादि का-प्रथम-द्वितीय-तृतीययह एक प्रकार; आद्यन्त का-प्रथम-द्वितीय-चतुर्थ, प्रथम-तृतीय-चतुर्थं तथा द्वितीय-तृतीय चतुर्थ, ये तीन प्रकार तथा सब का-प्रथम-द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ, यह एक ही भेद है। इस प्रकार सब मिल कर मिश्र यमक के उक्त ग्यारह प्रकार हो जाते हैं। यह यमक के कुछ प्रमुख भेदों का दिग्दर्शन-मात्र है। दण्डी ने यह स्वीकार किया है कि पादादि, पादमध्य तथा पादान्त यमक के व्यपेत, अव्यपेत तथा व्यपेताव्यपेत प्रकार की दृष्टि से तथा उनके ‘मिश्र एवं अमिश्र रूपों की दृष्टि से यमक के बहुल भेदों की कल्पना की जा सकती है। . इस विवेचन के उपरान्त 'काव्यादर्श' में सन्दष्ट एवं समुद्ग यमकों के लक्षण'उदाहरण दिये गये है। इनके लक्षण 'नाट्यशास्त्र' में भी दिये गये हैं। भामह ने भी यमक के इन भेदों का उल्लेख किया है । दण्डी की एतद्विषयक धारणा "पूर्वाचार्यों की धारणा के समान ही है। ___दण्डी ने यमक के एक श्लोकाभ्यास-भेद की कल्पना की है। इसमें सम्पूर्ण पद की अर्थभेद से आवृत्ति हो जाती है। दोनों श्लोकों में स्वर- व्यञ्जन सङ्कात का क्रम समान ही रहता है। अन्वय के लिए पदों का विच्छेद अलगअलग ढङ्ग से कर लिया जाता है । १. द्रष्टव्य–दण्डी, काव्याद० ३, १-३८ १. अत्यन्तबहवस्तेषां भेदाः सम्भेदयोनयः ।-दण्डी, काव्यद०, ३, ३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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