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अलङ्कार और भाषा
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प्रजा शब्द का विशेष प्रयोग राज्यवासी लोग के अर्थ में ही होता है। सन्तान अर्थ में उसका प्रयोग इतना कम हो गया है कि उस शब्द में अर्थादेश की स्थिति स्पष्ट हो गयी है । सन्नद्ध, कुशल, प्रणाली आदि शब्दों के अर्थ-परिवर्तन का कारण भी अलङ्कार-प्रयोग ही जान पड़ता है। किसी कार्य के लिए प्रस्तुत होने वाले को आरम्भ में अलङ्कत रूप में ही सन्नद्ध-सा ( सन्नाह पहन कर युद्ध में जाने के लिए प्रस्तुत-सा) कहा जाने लगा होगा। किसी की कार्यविशेष में पटुता देखकर उस पर कुश ले आने की पटुता रखने वाले (कुशल) का आरोप हुआ होगा। प्रणाली के मूल अर्थ नाला के सादृश्य के आधार पर रीति या ढंग को आलङ्कारिक रूप में प्रणाली कहा जाने लगा होगा। इस प्रकार उक्त शब्द आज सामान्य रूप से प्रस्तुत, पटु, रीति आदि के वाचक बन गये हैं। अलङ्कार-प्रयोग के कारण होने वाले अर्थ-परिवर्तन के असंख्य उदाहरण पाये जा सकते हैं।
भाषा और अलङ्कार के सम्बन्ध पर इस दृष्टि से भी विचार कर लेना वाञ्छनीय होगा कि शब्दार्थ के परिवर्तन का अलङ्कार पर क्या प्रभाव पड़ता है। भाषा में निरन्तर विकास होता रहता है। कितने ही प्राचीन शब्द लुप्त होते हैं, नवीन शब्द आविर्भूत होते हैं। किसी प्राचीन शब्द का मूल अर्थ छूट जाता है और नवीन अर्थ उसमें जुड़ जाता है। अर्थ और ध्वनि में विकास की सतत प्रक्रिया भाषा में चलती रहती है। भाषाशास्त्र के आचार्यों ने अर्थ विकास की तीन प्रक्रियाओं-अर्थ सङ्कोच, अर्थ विस्तार तथा अर्थादेश
-का निर्देश कर उस परिवर्तन के अनेक कारणों का उल्लेख किया है। ध्वनिपरिवर्तन के भी अनेक कारण निर्दिष्ट हैं। यहाँ उनका निर्देश अप्रासङ्गिक होगा। इतना सङ्केत ही यहाँ पर्याप्त होगा कि अर्थ-परिवर्तन के कारणों का प्रधान आधार मनोवैज्ञानिक है। शब्दविशेष के साथ मन में अर्थ विशेष का सम्बन्ध बना रहता है। कुछ कारणों से उस अर्थ के साथ अन्य अर्थ आ मिलते हैं, कुछ अर्थ छूट जाते हैं और अर्थ में परिवर्तन हो जाता है। असुर शब्द के साथ वैदिक युग में करुणामय, तेजस्वी तथा उदात्त व्यक्तित्व का अर्थ लोगों के मन में रहा होगा । तभी तो विष्णु की स्तुति में ऋषियों ने 'असुरः पिता नः' कहा था। असुर शब्द के अर्थ-परिवर्तन में-देवतावाची शब्द के राक्षसवाची शब्द बन जाने में-मनोवैज्ञानिक कारण स्पष्ट है। अपने शत्रुओं के असुर (देवता) को शत्रु का सहायक समझ कर आर्यों के मन में शत्रुपक्ष के असुर (शत्रुओं के देवता) के साथ क्षोभ, घृणा आदि का भाव अनजाने