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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
आ मिला होगा। धीरे-धीरे वह गौण अर्थ बढ़ता गया होगा और यह धारणा • बन गयी होगी कि असुर शत्र के उपास्य और सहायक है। वे आर्यों के प्रति
क्रूर व्यवहार करते हैं । जब शत्र के उपास्य असुर कहलाते हैं, जो आर्यों के लिए दुष्ट और क्र र है तो आर्य अपने उपास्य को असुर कैसे कह सकते हैं ? इस मनोवैज्ञानिक कारण से अनेक शब्दों में अर्थ-परिवर्तन होता रहता है। किसी जाति के अनेक भेदों का सामान्य रूप से बोध कराने वाले शब्द प्राधान्य के आधार पर एक ही भेद के बोधक बन जाते हैं। उसके अर्थ का सङ्कोच हो जाता है और अन्य अर्थ छूट जाते हैं। अस्तु, प्रस्तुत सन्दर्भ में हमारा विवेच्य यह है कि शब्द और अर्थ अलङ्कार के आधार हैं। अतः, जब किसी कारण से शब्द-अर्थ में परिवर्तन हो जाता है तब उसपर आधृत अलङ्कार की स्थिति में परिवर्तन भी स्वाभाविक है। वैदिक भाषा में
मृग शब्द पशु-मात्र का वाचक था। उससे वृषभ आदि वीर्यवान् पशु का भी • बोध होता था। मृग शब्द के साथ भीषणता का गौण अर्थ भी तत्कालीन लोगों के मन में रहा होगा। इसलिए 'मृगो नु भीमः' (पशु के समान भीषण ) वैदिक काल की उपमा का एक उदाहरण है। आज जब मृग शब्द के अर्थ का सङ्कोच हो गया है और वह पशु की एक विशेष जाति के अर्थ का वाचक है तब 'मृगो नु भीमः' कथन में कोई अलङ्कार नहीं रह गया है। आज लोगों के मन में मृग (हरिण ) के साथ कोमलता का बोध संसक्त है । अतः, मृग-सा भीषण कहने में न केवल अलङ्कार का अभाव माना जायगा वरन् इस प्रकार का कथन ही असङ्गत माना जायगा । वेद में 'पर्वतान् प्रकुपितान् स्थिरी चकार' इस कथन में कोई अलङ्कार नहीं था, क्योंकि प्रकुपित का अर्थ अस्थिर होने से उक्त कथन का सरल तात्पर्य था 'चञ्चल पर्वत को स्थिर कर दिया।' आज प्रकुपित शब्द क्रुद्ध अर्थ में प्रयुक्त है। पर्वत के लिए प्रकुपित लाक्षणिक प्रयोग है । अतः, आज उक्त कथन, जिसका अर्थ होगा 'क्रुद्ध पर्वत को स्थिर या शान्त कर दिया' अलङ कृत प्रयोग माना जायगा। इस प्रकार शब्द के अर्थ-परिवर्तन से उसके अलङ्कार लुप्त भी हो जाते हैं और कभीकभी अनायास कोई अलङ्कार आ भी जाता है । भाषा की यह प्रकृति भी मम्मट आदि आचार्यों की इस धारणा का ही पोषण करती है कि अलङ्कार शब्दार्थ के अनित्य धर्म हैं। अर्थविशेष के सम्बन्ध में लोगों की धारणा को वातावरण भी प्रभावित किया करता है। एक देश के वातावरण के अनुसार : जिस वस्तु के सम्बन्ध में सुन्दर या असुन्दर होने की धारणा निहित रहती है,