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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
उपमा और दीपक
'अलङ्कारसर्वस्व' में उपमा और दीपक के भेदक तत्त्व का निर्देश किया गया है। उपमा में 'इव' आदि सादृश्य वाचक पद का उपादान होता है; पर दीपक में 'इव' आदि वाचक पद का उपादान नहीं होता।' उपमा और तुल्ययोगिता
अलङ्कारसर्वस्वकार ने जिस आधार पर उपमा और दीपक का भेदनिरूपण किया है, उसी आधार पर उपमा और तुल्ययोगिता का भी भेद दिखाया है। उपमा में इवादि का उपादान होता है; पर तुल्ययोगिता में इवादि का उपादान नहीं होता। अप्रस्तुतप्रशंसा और दृष्टान्त ___ अप्रस्तुतप्रशंसा में अप्रस्तुत वाच्य और प्रस्तुत गम्य होता है; पर दृष्टान्त में समान धर्म वाली दो वस्तुएँ बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव से प्रस्तुत की जाती है, इसलिए दोनों ही वाच्य रहती हैं। एक अर्थ का-अप्रस्तुत अर्थ का-वाच्य तथा एक अर्थ का-प्रस्तुत अर्थ का गम्य होना अप्रस्तुतप्रशंसा को दृष्टान्त से-जिसमें दोनों अर्थ वाच्य रहते हैं-अलग करता है। इसी आधार पर 'अलङ्कारसर्वस्व' में दोनों का भेद किया गया है । विरोधाभास और विशेषोक्ति
विभावना की तरह विशेषोक्ति में भी कारण और कार्य में अन्योन्यबाधकता नहीं रहती, जो विरोधाभास से उसका वैशिष्ट्य प्रतिपादित करती है। विशेषोक्ति में कारण तथा कार्य की परस्पर बाधकता के अभाव का तात्पर्य यह है कि उसमें फलोत्पत्ति का अभाव परिमाणतः कारण की सत्ता की बाधा ही प्रमाणित करती है। यद्यपि विशेषोक्ति में समग्र कारण के रहने पर भा
१. तत्र सामान्यधर्मस्येवाद्य पादाने सकृन्निर्देशे उपमा।......"इवाद्यनुपादाने सकृन्निर्देशे दीपकतुल्ययोगिते ।
-रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० ७७ २. उपरिवत् । ३. सरूपयोस्तु वाच्यत्वे दृष्टान्तः । अप्रस्तुतस्य वाच्यत्वे प्रस्तुतस्य गम्यत्वे
सर्वत्राप्रस्तुतप्रशंसेति निर्णयः । -वही पृ० १३०