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________________ ७४४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण ने दण्डी ने अलङ्कार-निरूपण के सन्दर्भ में केवल यमक का तथा उद्भट केवल अनुप्रास का निरूपण कर वर्णावृत्ति तथा पदावृत्ति को एक ही अलङ्कार का पृथक्-पृथक् रूप माना । वामन ने यमक और अनुप्रास को दो स्वतन्त्र अलङ्कार मानकर दोनों को अलग-अलग परिभाषित किया। उनके अनुसार वर्ण - समुदाय की आवृत्ति यमक है । यदि वर्ण-समुदाय सार्थक पद हो तो उसकी आवृत्ति होने पर दोनों का अर्थ भेद आवश्यक है । यमक में आवृत्त वर्ण-सङ्घका स्थान भी नियत होता है । अनुप्रास का उससे भेद यह है कि अनुप्रास में एकार्थक तथा अनेकार्थक पदों की आवृत्ति हो सकती है और उसमें पदों का स्थान भी अनियत रहता है । इस भेद को स्पष्ट करते हुए वामन ने वृत्ति में यह मन्तव्य व्यक्त किया है कि यमक में स्वर - व्यञ्जन सङ्घात की अर्थ-भेद से आवृत्ति होती है; पर अनुप्रास में स्वरों की भिन्नता के साथ भी समान रूप वाले व्यञ्जनों के समुदाय की आवृत्ति हो सकती है । रुय्यक, मम्मट, विश्वनाथ आदि को अनुप्रास और यमक के भेद के सम्बन्ध में यही मत मान्य है । १ लाटानुप्रास में यमक की तरह ही स्वर - व्यञ्जन-समुदाय की आवृत्ति होती है । पर दोनों का भेद यह है कि सार्थक पदों की आवृत्ति यमक में वाच्यार्थ के भेद के साथ ही होती है; पर लाट अनुप्रास में आवृत्त सार्थक पदों में तात्पर्यार्थ मात्र का भेद अपेक्षित रहता है । २ निष्कर्षतः, यमक अनुप्रास का भेद निम्नलिखित है (क) यमक में स्वर और व्यञ्जन-समुदाय की उसी रूप में आवृत्ति होती है; पर अनुप्रास में स्वर-भेद से भी केवल व्यञ्जन की आवृत्ति हो सकती है । (ख) यमक में यदि सार्थक पद की आवृत्ति हो तो दोनों में अर्थ का भेद होना आवश्यक है; पर अनुप्रास में एकार्थ पदों की भी आवृत्ति हो सकती है और अनेकार्थ पदों की भी । लाटानुप्रास में आवृत्त पदों में केवल तात्पर्यार्थ का भेद अपेक्षित होता है । १. पदमनेकार्थमक्षरं वाऽऽवृत्तं स्थाननियमे यमकम् । वामन, काव्यालं ० सू० ४,१,१ तुलनीय - शेषः सरूपोऽनुप्रासः ४, १८ तथा उसकी वृत्ति पृ० १७७ २. शाब्दस्तु लाटानुप्रासो भेदे तात्पर्य मात्रतः । तुलनाय - अर्थे सत्यर्थ भिन्नानां वर्णानां सा पुनः श्रुतिः । यमकम्.... । --- - मम्मट, काव्यप्रकाश, ६, ८१ तथा ६,८३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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