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________________ अलङ्कारों का पारस्परिक भेद [ ७४५ (प) यमक में वर्ण-सङ्घ की आवृत्ति का स्थान नियत रहता है, अनुप्रास में अनियत । (घ) यमक में स्वर तथा व्यञ्जन की उसी रूप में आवृत्ति होती है; पर अनुप्रास में किसी व्यञ्जन के समान श्रति वाले अन्य व्यञ्जन का भी विन्यास हो सकता है। यमक एवं पूनरुक्तवदाभास यमक में समान शब्द की आवृत्ति होती है; पर आवृत्त शब्दों में अर्थ-भेद आवश्यक माना जाता है। पुनरुक्तवदाभास में आपाततः समानार्थक जान पड़ने वाले शब्दों में तत्त्वतः अर्थभेद रहा करता है। दोनों में मुख्य भेद यह है कि यमक में समान शब्द एकाधिक बार आता है जब कि पुनरुक्तवदाभास में भिन्न आकार वाले शब्द-जो पर्यायवाची-से लगते है; पर वस्तुतः उनके अर्थ भिन्न होते है-प्रयुक्त होते । अर्थान्तरन्यास और उदाहरण पण्डितराज जगन्नाथ ने विशेष से सामान्य के समर्थन-रूप अर्थान्तरन्यास से उदाहरण का भेद बताते हुए कहा है कि उदाहरण में अवयवावयवी सम्बन्ध का बोध कराने वाले 'इव' आदि पदों का प्रयोग होता है, अर्थान्तरन्यास में ऐसा प्रयोग नहीं होता । दूसरी बात यह कि उदाहरण में सामान्य और विशेष का एक रूप विधेय से अन्वय होता है,जो अर्थान्तरन्यास में नहीं होता।' सामान्य अर्थ का समर्थक विशेष दो प्रकार का हो सकता है, एक वह जिसका केवल उद्देश्य अंश विशेष हो और विधेयांश सामान्यगत हो । ऐसा ही विशेष उदाहरण का रूप-विधान करता है। इसीलिए उदाहरण में सामान्य और विशेष का एक रूप विधेयान्वय अपेक्षित माना गया है। सामान्य के समर्थक विशेष का दूसरा प्रकार वह हो सकता है, जिसमें उद्देश्य और विधेय; दोनों विशेष हों। ऐसा ही विशेष अर्थान्तरन्यास में अपेक्षित होता है। २ इस प्रकार उदाहरण और अर्थान्तरन्यास के दो भेद स्पष्ट हैं१. अस्मिंश्चालङ्कारे (उदाहरणालङ्कारे) अवयवावयविभावबोधकस्येव शब्दादेः प्रयोगः सामान्यविशेषयोरेकरूप विधेयान्वयश्चार्थान्तरन्यास भेदावलक्षण्याधायकः...|-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ३४० २. सामान्यार्थसमर्थकस्य विशेषवाक्यार्थस्य द्वयी गतिः । अनुवाद्यांशमात्रे विशेषत्वं विधेयांशस्तु सामान्यगत एवेत्येका। अनुवाद्यविधेयोभयांशेऽपि विशेषत्वमित्यपरा। तत्राद्या उदाहरणालङ्कारस्य विषयः; द्वितीयात्वर्थान्तरन्यासभेदस्य । -वही, पृ० ७४६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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