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________________ ७४२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण समाधि और प्रहर्षण समाधि में प्रसिद्ध कारण के साथ अन्य कारणों के योग से कार्य की सुकरता दिखायी जाती है; पर प्रहर्षण में बिना यत्न के अकस्मात् कार्य की सिद्धि का वर्णन होता है; यह दोनों का पारस्परिक भेद है। मम्मट के टीकाकार वामन झलकीकर की युक्ति है कि समाधि-लक्षण में 'कारणान्तरयोग से' यह कथन उपलक्षण है। अकस्मात् कार्य-सिद्धि में भी मम्मट आदि को समाधि की सत्ता ही मान्य थी। अतः, उन्होंने प्रहर्षण की स्वतन्त्र सत्ता नहीं मानी। हम देख चुके हैं कि थोड़े-थोड़े भेद से एक अलङ्कार से अनेक अलङ्कारों का जन्म हुआ है। उक्त अलङ्कारों के बीच भी कारणान्तर के योग से कार्य-सौनयं तथा अकस्मात् कार्य-सिद्धि का ही भेद है। सम और समुच्चय ___समुच्चय में सत् कारणों या असत् कारणों का एक साथ होना वर्णित होता है; पर सम में कारणातिरिक्त वस्तुओं का भी योग रह सकता है, यह दोनों का पारस्परिक भेद है। कार्यकारण-भाव के अनुरूप संसर्ग में भी सम होता है । समुच्चय में कार्य-कारण का सहभाव नहीं आ सकता। भ्रान्तिमान और मीलित भ्रान्तिमान् में अन्य वस्तु को (प्राकरणिक को ) देखकर अन्य (अप्राकरणिक ) का निश्चयात्मक ज्ञान होता है; पर मीलित में प्राकरणिक का अप्राकरणिक के रूप में बोध आवश्यक नहीं, उसमें एक वस्तु से समान चिह्न वाली अन्य वस्तु का निगृहन-मात्र विवक्षित होता है। पण्डितराज जगन्नाथ ने दोनों के इस भेद की ओर सङ्कत किया है।४ १. अत्र (समाधौ) 'कारणान्तरयोगतः' इत्युपलक्षणम् । तेनाकस्मादीप्सि तार्थलाभस्य वाञ्छितसिद्ध्यर्थयत्नात्तदधिकलाभस्य उपायसिद्ध्यर्थयत्नात्साक्षात्फललाभवर्णनस्य च समाधित्वमेव सौकर्यस्य अनायासेन सिद्ध यादिरूपस्येवाकस्मिकत्वादि-रूपस्यापि ग्रहात् । एतेन ईदृशे विषये प्रहर्षणं भिन्नोऽलङ्कार इत्यपास्तम् । -काव्यप्रकाश, झलकीकर कृत टीका पृ० ७१७ २. समुच्चये सतोरसतो; कारणयोः समुच्चयः, अत्र (समे) त्वकारण___ योरपि तयोर्योगस्यौचित्याभिधानमिति विशेषः । -वही, पृ० ७१८ ३. (भ्रान्तिमान्लक्षणे ) अप्राकरणिकतादात्म्येनेत्युक्तेर्मीलितसामान्य तद्गुणवारणम् । भ्रान्तिमात्रमत्रालङ्कारः "।-वही, पृ० ७३३ ४. लक्षणे ( भ्रान्तिमान्लक्षणे ) मीलितसामान्यतद्गुणवारणाय धर्मि ग्रहणद्वयम् ।-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ४२१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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