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________________ अलङ्कारों का पारस्परिक भेद [ ७४१ उत्तर र परिसंख्या प्रश्नपूर्वक उत्तर में पहले प्रश्न का उपन्यास कर उसके लोकोत्तर चमत्कारशाली उत्तर का उल्लेख किया जाता है। प्रश्नपूर्विका परिसंख्या में प्रश्न किये जाने पर उसके उत्तर में किसी वस्तु का निषेध और किसी की स्थापना की जाती है । मम्मट ने प्रश्नोत्तर और प्रश्न - परिसंख्या का भेद बताते हुए कहा है कि प्रश्नपूर्वक उत्तर की 'विश्रान्ति वाच्यार्थ में ही होती है; पर प्रश्नपूर्विका परिसंख्या में अन्य वस्तु के निषेध ( एक की स्थापना ) का तात्पर्य हा करता है । प्रश्न के उत्तर में किसी वस्तु की वर्जना परिसंख्या का रूपविधान करती है । उत्तर में वाच्य का ही अतिशय प्रतिपादन कवि का उद्देश्य होता है । रुय्यक के मतानुसार भी अन्य वस्तु की वर्जना का तात्पर्य परिसंख्या का तथा वाच्यमात्र का उत्कर्ष - साधन उत्तर का विशेषाधायक धर्म है सूक्ष्म और अनुमान सूक्ष्म में भी इङ्गित आदि से आशय का बोध होता है और अनुमान में भी लिङ्ग से साध्य का अनुमान होता है । यह शङ्का की जा सकती है कि इङ्गित आदि (लिङ्ग) भाव के अनुमापक होते हैं; अतः सूक्ष्म को भी अनुमान का ही अङ्ग क्यों न मान लिया जाय ? विद्या चक्रवर्ती तथा उद्योतकार आदि ने इसका समाधान इस युक्ति से किया है कि सूक्ष्म में कविनिबद्ध पात्र अपनी विदग्धता मे अपना आशय इङ्गित आदि से सूचित करता है । इसका चमत्कार अर्थ को लक्षित करने की विदग्धता में है । अतः यह अनुमान से स्वतन्त्र सौन्दर्य रखता है । 3 , १ प्रश्नपरिसंख्यायामन्यव्यपोहे एव तात्पर्यम् । इह तु ( उत्तरालङ्कारे तु) वाच्ये एव विश्रान्तिरित्यनयोर्विवेकः । मम्मट, काव्य प्र०, १०, १२१ की वृत्ति पृ० २८१ २. न चेदं (उत्तरं ) परिसंख्या, व्यवच्छेद्यव्यवच्छेदकपरत्वाभावात् । —रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० २१४ ६. अत्र (सूक्ष्मोदाहरणे ) विद्यमानमप्यनुमानं सूक्ष्माङ्गम् स्ववैदग्ध्यप्रकाशनद्वारा सूक्ष्मस्यैव चमत्कारित्वात् । काव्यप्रकाश, उद्योत उद्धृत, बालबोधिनी पृ० ७१२ और — तथाचाहुश्चक्रवर्ति भट्टाचार्या अपि यद्यप्यत्र स्वेदविशेषपुरुषायतयोः साध्यसाधनयोरेकधमिगतत्वेनोपादानादनुमानमेवालङ्कारो भवितुमहति तथापि स्ववैदग्ध्यप्रतिपिपाद - विषयान्यस्मै सूक्ष्मार्थप्रकाशनमुखेनैव चमत्कार इति स एवालङ्कारः अनुमानं तु तदनुग्राहकमित्यन्यदेतत् । - वही पृ० ७१२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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