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________________ ७२८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण के व्यवहार का आरोप कर दिया जाता है; पर रूपक में प्रकृत के स्वरूप परजो प्रकृत विशेष्य होता है-अप्रकृत से स्वरूप का आरोप किया जाता है। पण्डितराज जगन्नाथ के अनुसार दोनों का मुख्य भेद यह है कि समासोक्ति में व्यवहारमात्र का समारोप होता है, विषय पर विषयी के तार प्य की प्रतीति नहीं होती; पर रूपक में विषय पर विषयी का आहार्य ताद्र प्य दिखाया जाता है।' रुय्यक ने भी इसी आधार पर दोनों का विषय-विभाग किया था। निदर्शना और गम्या उपमा निदर्शना में दो सम्भव या असम्भव सम्बन्ध वाले वाक्यार्थों का औपम्य में पर्यवसान होता है। प्रश्न किया जा सकता है कि निदर्शना को गम्या उपमा ही क्यों न माना जाय ? उत्तर यह है कि दोनों में औपम्य के गम्य होने की समता होने पर भी दोनों में अलग-अलग चमत्कार है। अतः दोनों को अभिन्न नहीं माना जा सकता। निदर्शना का चमत्कार दो वाक्याओं के बीच अभेदप्रतीति में-कल्पित औपम्य में दो वाक्यार्थों के पर्यवसान में है। उपमा का चमत्कार सादृश्य-प्रत्यायन-मात्र में रहता है । अतः, उपमा से-गम्यौपमा सेनिदर्शना स्वतन्त्र अलङ्कार है। चमत्कार के अलग-अलग होने के आधार पर ही उद्योतकार ने दोनों को परस्पर स्वतन्त्र अलङ्कार स्वीकार किया है। 3 श्लेष और अप्रस्तुतप्रशंसा ___ अप्रस्तुतप्रसा में अप्रकृत अर्थ के कथन से प्रकृत अर्थ का भी बोध हो जाता है। श्लेष में विशेषण तथा विशेष्य; सभी के वाचक शब्द दो अर्थों के वाचक होते हैं। इस प्रकार विशेषण तथा विशेष्य के श्लिष्ट प्रयोग से दो या अधिक अर्थों का बोध श्लेष का तथा अप्रकृत के कथन से प्रकृत का आक्षेप १. उपरञ्जकतामाहार्यताद्र प्यनिश्चयगोचरतामित्यनेन सन्देहोत्प्रेक्षा समासोक्ति......."भ्रान्तिमत्स्वतिव्याप्तिनिरासः ।..........."समासोक्तिपरिणामयोविषयिताद्र प्यस्यागोचरत्वात्, समासोक्तो व्यवहारमात्रसमारोपात्""तस्यानाहार्यत्वादित्याहुः । -जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ३५७-५८ २. द्रष्टव्य-रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० ६२ ३. न च निदर्शनाविषये व्यङ ग्योपमयैवास्तु चमत्कार इति वाच्यम् अत्राभेदप्रतीतिकृतचमत्कारस्यैव सत्त्वात् कल्पितौपम्यमूलिकया पर्यवसन्नया तयैव चमत्कार इत्याशयात् । तदुक्तम् 'उपजीव्यत्वेन भेदात्' इति । इत्युद्योतः । -काव्यप्रकाश, बालबोधिनी, पृ० ६१५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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