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________________ ७१६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण विषम और विरोध विरोध में विरोधी पदार्थों की एकत्र सङ्घटना होती है । जो विरोधी पदार्थ स्वभावतः भिन्नदेश में रहते हैं उनका एकदेशत्व दिखाना विरोध है। विषम में कार्य और कारण के परस्पर विरोधी गुण और क्रिया का वर्णन होता है। यह दोनों अलङ्कारों का पारस्परिक भेद है। कारण और कार्य की परस्पर विरोधी गुण-क्रिया के योग-रूप विषम से विरोध का भेद स्पष्ट करते हुए वामन झलकीकर ने भी कहा है कि उक्त विषम भेद में कार्य तथा कारण की . विरोधी गुण-क्रिया का योग दिखाने में ही चमत्कार रहता है, जब कि विरोध में भिन्नदेशतया प्रसिद्ध वस्तुओं की एकदेश में घटना का चमत्कार रहता है।' विरोध और असङ्गति विरोध में भिन्न देश में रहने वाले पदार्थों का एकदेशत्व वणित होता है; " पर असङ्गति में साधारणतः एकदेश में रहने वाले पदार्थों (कारण और कार्य) की भिन्नदेशता दिखायी जाती है । आचार्य मम्मट ने दोनों के इस भेद का निर्देश किया है। वामन झलकीकर ने इस तथ्य का स्पष्टीकरण किया है कि विरोधाभास का विषय समान्य रूप में विरोध है;3 पर, असङ्गति का विषय कार्य-कारण की भिन्नदेशता-रूप विशेष प्रकार का विरोध ही। विमर्शिनीकार १. द्वितीयभेदद्वये च कार्यकारणयोविरुद्धगुणक्रियायोग एव चमत्कारी विरोधालङ्कारे तु भिन्नदेशकयोरेकदेशकत्वम् । -काव्यप्रकाश, बालबोधिनी टीका, पृ० ७१६ २. एषा च विरोधवाधिनी न विरोधः भिन्नाधारतयैव द्वयोरिह विरोधितायाः प्रतिभासात् विरोधे तु विरोधित्वं एकाश्रयनिष्ठमनुक्तमपि पर्यवसितम्.....""। मम्मट, काव्यप्रकाश १०,१२४ की वृत्ति । ३. द्रष्टव्य-काव्यप्रकाश, झलकीकरकृत टीका, पृ० ७१६ ।। ४. यत्तु विरोधालङ्कारे ह्य कस्मिन्नधिकरण द्वयोः सम्बन्धाद्विरोधप्रतिभानमसङ्गतौ त्वधिकरणद्वयम् इति तस्मादस्य वैलक्षण्यमिति विमर्शिनीकार आह । तदसत् । इहापि तत्तत्कार्यतावच्छेदकधर्मतत्तत्कारणवैयधिकरण्यरूपयोधर्मयोरेकस्मिन्कार्यरूपेऽधिकरणे सम्बन्धादेव विरोधप्रतिभानोत्पत्तः। तस्माद्विरोधालङ्कारे उत्पत्तिविमर्श विनैव विरोधप्रतिभानमिह तूत्पत्तिविमर्शपूविकैव विरोधप्रतिभोत्पत्तिरिति वैलक्षण्य मिति । वस्तुतस्तु व्यधिकरणत्वेन प्रसिद्धयोः समानाधिकरणत्वेनोपनिबन्धने विरोधालङ्कारः। समानाधिकरणत्वेन प्रसिद्धयोर्वैयधिकरण्येनोपनिबन्धनेऽसङ्गतिः ।-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७००-१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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