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अलङ्कारों का पारस्परिक भेद
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तद्गुण और भ्रान्तिमान् ___तद्गुण में कोई वस्तु अपने गुण का त्याग कर अन्य वस्तु के उत्कृष्ट गुण का ग्रहण करती है। दूसरे शब्दों में, एक वस्तु पर अन्य वस्तु के गृह्यमाण गुण का आरोप होता है, जब कि भ्रान्तिमान में प्रकृत वस्तु पर स्मर्यमाण अन्य वस्तु का आरोप होता है। इस आधार पर उद्योतकार ने तद्गुण और भ्रान्तिमान् का भेद-निरूपण किया है।' जगन्नाथ ने भी भ्रातिमान् की परिभाषा में , धर्मी में धर्म्यन्तर के ज्ञान का उल्लेख कर तद्गुण से उसका भेद इसी आधार पर निरूपित किया है।
विषम और असङ्गति
विषम के एक भेद में कार्य के गुण से कारण के विरुद्ध गुण का तथा दूसरे में कार्य की क्रिया से कारण की विरुद्ध क्रिया का योग दिखाया जाता है। कार्य और कारण में विरुद्ध गुण और क्रिया का योग ही उसका सौन्दर्य है; पर असङ्गति में कार्य और कारण की भिन्नदेशता के वर्णन का चमत्कार रहता है। सामान्यतः, कार्य और कारण में समान गुण-क्रिया ही देखी जाती है; पर इस सामान्य नियम के विरुद्ध कार्य और कारण में विरोधी गुण-क्रिया का वर्णन विषम है। सामान्यतः, जहाँ कारण हो वहीं कार्य की भी उत्पत्ति देखी जाती है; पर कारण का एकत्र और कार्य का अपरत्र दिखाया जाना—दोनों का भिन्नदेशत्व-वर्णन-असङ्गति है। झलकीकर ने इसी तथ्य को स्वीकार कर कहा है कि विषम का चमत्कार कार्य और कारण की विरोधी गुण-क्रिया के योग में रहता है, जब कि असङ्गति का चमत्कार एकदेशतया प्रसिद्ध कार्यकारण की भिन्नदेशता के वर्णन में रहता है। 3
१. अप्राकरणिकतादात्म्येनेत्युक्तेर्मीलितसामान्यतद्गुणवारणम् ।
वही, पृ० ७३३ तथा-भ्रान्तिमति स्मर्यमाणस्यारोपः अत्र (तद्गुणे) गृह्यमाणस्येति भेदः भ्रान्तेनिबद्धत्वाभावाच्च ।-काव्यप्रकाश उद्योत
से बालबोधिनी में उद्धृत, पृ० ७४६ २. द्रष्टव्य-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ४२१ ३. द्वितीयभेदद्वये (विषमस्य भेदद्वये) च कार्यकारणयोविरुद्धगुणक्रियायोग
एव चमत्कारी..."असङ्गत्यलङ्कारे एकदेशकयोभिन्नदेशकत्वमेव चमत्कारीति भेदः ।-काव्यप्रकाश, झलकीकरकृत टीका पृ० ७१६