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________________ अलङ्कारों का पारस्परिक भेद [ ७०१ वस्तु-सम्बन्ध के सम्भव या असम्भव होने पर सादृश्य की प्रतीति में पर्यवसान " होने के कारण बिम्बप्रतिबिम्बभाव का गम्य होना कहा गया है। ध्यातव्य है । कि मम्मट आदि वस्तुसम्बन्ध के बाधित होने पर ही उपमा में उस सम्बन्ध । का पर्यवसान निदर्शना का लक्षण मानते है, पर रुय्यक वस्तुसम्बन्ध के सम्भव होने तथा असम्भव होने पर; दोनों ही स्थितियों में सादृश्य का आक्षेप होना निदर्शना का लक्षण मानते हैं। मम्मट आदि के अनुसार 'अभवन्वस्तु- . सम्बन्ध' अर्थात् सम्बन्ध-प्रतीति का अभाव निदर्शना का एक व्यावर्तक होगा। उद्योतकार ने परस्पर निरपेक्ष वाक्यार्थों में बिम्बप्रतिबिम्बभाव को दृष्टान्त का - तथा परस्पर सापेक्ष वाक्यार्थों में बिम्बप्रतिबिम्बभाव को निदर्शना का व्यवच्छेदक मान कर दोनों के भेद निरूपण के सिद्धान्त का विवेचन किया है।' विश्वनाथ की मान्यता है कि असम्भवद्वस्तुसम्बन्धा निदर्शना में बिम्ब- . प्रतिबिम्बभाव की कल्पना किये विना वाक्यार्थ की विश्रान्ति ही नहीं हो सकती; पर दृष्टान्त में पूर्ण वाक्यार्थ से अन्य वाक्यार्थ के साथ बिम्बप्रतिबिम्बभाव दिखाया जाता है। दूसरे शब्दों में, निदर्शना में वाक्यार्थ अपनी पूर्णता के लिए सादृश्य-कल्पना की अपेक्षा रखता है, पर दृष्टान्त में वाक्यार्थ - अन्य-निरपेक्ष और अपने आप में पूर्ण रहता है। निष्कर्ष यह कि दृष्टान्त और वाक्यार्थवृत्ति निदर्शना में मुख्य भेद बिम्बप्रतिबिम्बभाव के वाच्य और गम्य होने की दृष्टि से है। दृष्टान्त में परस्पर निरपेक्ष वाक्यों में बिम्बप्रतिबिम्बभाव की कल्पना की जाती है, पर निदर्शना में एक ही वाक्यार्थ में अन्य वाक्यार्थ का आक्षेप से अध्यारोप होता है या परस्पर सापेक्ष वाक्यार्थ में बिम्बप्रतिबिम्बभाव लक्षित होता है। अभवन्वस्तुसम्बन्धा वाक्यवृत्तिगता निदर्शना में तो वस्तु-सम्बन्ध के बाधित रहने के कारण तब . तक वाक्यार्थ का पर्यवसान ही नहीं होता जब तक उस वाक्यार्थ के लिए १. 'अभवन्वस्तुसम्बन्धः' इत्युक्तत्वादेव प्रतीतिपर्यवसानाभावादस्य दृष्टान्ततो. भेदः । परस्परनिरपेक्षयोर्वाक्यार्थयोदृष्टान्तालङ्कारः, इयं (निदर्शना) पुनः सापेक्षयोरिति भेद इत्यन्ये इत्युद्योते स्पष्टम् । -काव्यप्रकाश, झलकीकर की टीका, पृ. ६१४ २. इह (निदर्शनायां) बिम्बप्रतिबिम्बताक्षेपं विना वाक्यार्थपर्यवसानम्, दृष्टान्ते पर्य्यवसितेन वाक्यार्थेन सामाबिम्बप्रतिबिम्बताप्रत्यायनम् । -विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, पृ० ६८६.
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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