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________________ · ७०० ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण निष्कर्षतः, दृष्टान्त में दो वस्तुओं का बिम्बप्रतिबिम्ब-भाव तथा अर्थान्तरन्यास में समर्थ्य - समर्थक भाव दोनों का मुख्य व्यावर्तक है । दृष्टान्त में विशेष की पुष्टि विशेष से तथा सामान्य की सामान्य से ही होती है, पर अर्थान्तरन्यास में विशेष का समर्थन सामान्य से तथा सामान्य का समर्थन विशेष से होता है । टान्त और निदर्शना आचार्य रुय्यक ने सर्वप्रथम दृष्टान्त और वाक्यार्थवृत्ति निदर्शना का - विषय - विभाग व्यवस्थित किया। उनके अनुसार वस्तुओं का वाच्य बिम्बप्रतिबिम्बभाव दृष्टान्त का विषय है, किन्तु गम्यमान बिम्बप्रतिबिम्बभाव निदर्शना का क्षेत्र है । निदर्शना में वस्तु सम्बन्ध के सम्भव होने पर भी वस्तु सम्बन्ध के वैशिष्ट्य से बिम्बप्रतिबिम्बभाव का बोध हो सकता है और वस्तु-सम्बन्ध के बाधित हो जाने पर भी वस्तु सम्बन्ध से बिम्बप्रतिबिम्बभाव - का आक्षेप हो सकता है । इन दोनों ही स्थितियों में वस्तुओं का बिम्बप्रतिबिम्बभाव गम्य ही होता है । इस तथ्य को उद्भट, मम्मट आदि ने वस्तुसम्बन्ध का औपम्य में पर्यवसित होना कहा था । प्रकृत अप्रकृत के बीच उपमानोपमेय-भाव के पर्यवसित होने को ही रुय्यक ने गम्य बिम्बप्रतिबिम्बभाव कहा है । दृष्टान्त के वाच्य बिम्बप्रतिबिम्बभाव तथा निदर्शना के गम्य बिम्बप्रतिबिम्बभाव के स्वरूप पर विचार करने से दोनों अलङ्कारों का स्वरूपगत भेद स्पष्ट हो जाता है । दृष्टान्त में ( वाच्य बिम्बप्रतिबिम्बभाव में ) दो परस्पर निरपेक्ष वाक्य रहते हैं। दोनों वाक्यार्थों में बिम्बप्रतिबिम्बभाव सम्बन्ध दिखाया जाता है अर्थात् दोनों के तत्त्वत: भिन्न होने पर भी सादृश्य के कारण दोनों में अभेद की प्रतीति करायी जाती है । निदर्शना में एक ही वाक्य से प्रकृत अर्थ का उपन्यास होता है और ( समान विभक्ति से, समान अधिकरण से ) वस्तुसम्बन्ध से अन्य वाक्यार्थ का उस पर अध्यारोप कर लिया जाता है । यदि वाक्य दो भी हों तो दोनों वाक्यार्थ परस्पर सापेक्ष होते हैं । ९. तस्यापि बिम्बप्रतिबिम्बतया निर्देशे दृष्टान्तः । तुलनीय - सम्भवतासम्भावता वा वस्तुसम्बन्धेन गम्यमानं प्रतिबिम्बकरणं निदर्शना । - रुय्यक, अलङ्कारसूत्र, २६ तथा २७ २. द्रष्टव्य — उद्भट, काव्यालङ्कारसारसं ०, ५,१८ तथा - मम्मट, काव्यप्रकाश, १०,६७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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