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________________ ६९८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण विवक्षित है। सादृश्य में भेद का अर्थ अन्तनिहित रहता है। अतः प्रतिवस्तूपमा से दृष्टान्त का यह भेद स्पष्ट हो जाता है कि दृष्टान्त में तत्त्वतः भिन्न धर्म वाली (सदृश धर्म वाली) वस्तुएँ रहती हैं, जब कि प्रतिवस्तूपमा में अभिन्न अर्थात् एक ही धर्म का दो बार उपादान होता है। 'काव्यप्रकाश' के टीकाकार झलकीकर ने भी प्रतिवस्तुपमा परिभाषा में एक साधारण धर्म के उल्लेख का उद्देश्य दृष्टान्त से उसके भेद का स्पष्टीकरण ही माना है । प्रतिवस्तूपमा में एक ही साधारण धर्म वस्तुप्रतिवस्तुभाव से दो बार कथित होता है पर दृष्टान्त में वस्तुतः दो धर्मों में बिम्बप्रतिबिम्बभाव रहता है। निष्कर्षतः, दृष्टान्त और प्रतिवस्तूपमा का व्यावर्तक क्रमशः बिम्बप्रतिबिम्बभाव तथा वस्तुप्रतिवस्तुभाव ही है। बिम्ब-प्रतिबिम्ब-भाव धर्म तथा धर्मी; दोनों का सम्भव है । अतः, दृष्टान्त में धर्मों या धर्मियों का बिम्ब-प्रतिबिम्बभाव वर्णित होता है, पर वस्तुप्रतिवस्तु-भाव केवल धर्मों में ही सम्भव होता है, धर्मियों में नहीं। अतः, प्रतिवस्तूपमा में धर्मों का ही वस्तु-प्रतिवस्तुभाव (एक धर्म का शब्दभेद से दो बार उपादान) दिखाया जाता है । __ दृष्टान्त और प्रतिवस्तूपमा के विषय-विभाग के सम्बन्ध में कुछ आचार्यों के मत का निर्देश करते हुए डॉ० रामचन्द्र द्विवेदी ने कहा है कि "कुछ आचार्य दृष्टान्त में प्रकृत और अप्रकृत में समर्थ्य और समर्थक-भाव होता है इस आधार पर इसका प्रतिवस्तूपमा से भेद करते हैं।" डॉ० द्विवेदी की आपत्ति है कि यदि दृष्टान्त में भी प्रकृत-अप्रकृत में समर्थ्य-समर्थक भाव मान लिया जाय तो, अर्थान्तरन्यास से उसका भेद नहीं रह जायगा ।२ यह तर्क सबल नहीं है। दृष्टान्त में समर्थ्य-समर्थक-भाव मानने पर भी अर्थान्तरन्यास से उसका यह भेद रह जाता है कि उसमें सामान्य का सामान्य से और विशेष का विशेष से ही समर्थन होता है । जबकि अर्थान्तरन्यास में समर्थन सामान्य का विशेष से और विशेष का सामान्य से होता है। बिम्बप्रतिबिम्बभाव से अन्य अर्थ के उपन्यास में उद्देश्य मूलतः प्रकृत का समर्थन ही तो होता है ! १. ....."एकस्येत्यनेन दृष्टान्तव्युदासः तत्र साधारणधर्मस्य बिम्बप्रतिबिम्बभावेन निदेशेनैकत्वविरहात् । -काव्यप्रकाश झलकीकरकृत टीका पृ० ६३० २. द्रष्टव्य-डॉ० रामचन्द्र द्वि०, अलं० मी०, पृ० ३३२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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