________________
अलङ्कारों का पारस्परिक भेद
[ ६८५. भिन्न-भिन्न शब्दों से एक ही धर्म की आवृत्ति होती है। इस प्रकार इसका स्वरूप प्रतिवस्तूपमा से कुछ मिलता-जुलता है। अतः अर्थावृत्ति दीपक से प्रतिवस्तूपमा का भेद-निरूपण आवश्यक है। प्रतिवस्तूपमा में भिन्न-भिन्न शब्दों से एक ही धर्म की आवृत्ति होती है और इस प्रकार प्रस्तुत वाक्यार्थ एवं अप्रस्तुत वाक्यार्थ में सादृश्य की प्रतीति करायी जाती है। अर्थावृत्ति दीपक में दोनों ही वाक्यार्थ या तो प्रस्तुत रहते हैं या अप्रस्तुत । अप्पय्य दीक्षित ने इस तथ्य को दृष्टि में रखकर अर्थावृत्ति दीपक तथा प्रतिवस्तूपमा का एक व्यावर्तक लक्षण यह माना था कि अर्थावृत्ति केवल प्रस्तुत वाक्यार्थों में हो सकती है अथवा केवल अप्रस्तुत वाक्यार्थों में; पर प्रतिवस्तूपमा प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत वाक्यार्थों में होती है। दूसरे शब्दों में प्रतिवस्तूपमा में एक वाक्यार्थ प्रस्तुत रहता है, दूसरा अप्रस्तुत; पर प्रतिवस्तूपमा में या तो दोनों वाक्यार्थ प्रस्तुत रहते हैं या दोनों ही अप्रस्तुत रहते हैं। अप्पय्य दीक्षित के अनुसार उक्त अलङ्कारों में दूसरा भेदक धर्म यह है कि आवृत्ति दीपक केवल साधर्म्य-. मूलक ही होता है। वैधर्म्य से आवृत्तिदीपक की कल्पना नहीं की जा सकती; पर प्रतिवस्तूपमा साधर्म्यमूलक भी हो सकती है और वैधर्म्यमूलक भी। 'काव्यप्रकाश' के टीकाकार वामन झलकीकर ने कहा है कि विवरणकार केअनुसार एक धर्म की दो बार आवृत्ति प्रतिवस्तूपमा का व्यार्वतक धर्म है। दीपक में एक धर्म की दो बार आवृत्ति नहीं होती। इस प्रकार अर्थावत्ति दीपक तथा प्रतिवस्तूपमा में निम्नलिखित दो भेद हैं
(क) अर्थावृत्ति दीपक अनेक प्रस्तुत वाक्यार्थों में अथवा अनेक अप्रस्तुत वावयार्थों में ही सम्भव है, प्रतिवस्तूपमा प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत वाक्यार्थों में सम्भव होती है। अभिप्राय यह कि अर्थावृत्ति में या तो सभी वाक्यार्थ प्रस्तुत रहते हैं या सभी अप्रस्तुत; पर प्रतिवस्तूपमा में प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत दोनों ही वाक्यार्थों का रहना आवश्यक है।
१. अर्थावृत्तिदीपकं प्रस्तुतानामप्रस्तुतानां वा; प्रतिवस्तूपमा तु प्रस्तुता
प्रस्तुतानामिति विशेषः । अयं चापरो विशेषः । आवृत्तिदीपक वैधर्येण न सम्भवति, प्रतिवस्तूपमा तु वैधयेणापि दृश्यते।
-अप्पय्य, कुवलयानन्द वृत्ति, पृ० ५५-५६, २. उक्त च विवरणकरैरपि ।... एकस्यापि धर्मस्य द्विरवृत्तेः वाक्यद्वयस्याभावेन च न प्रतिवस्तूपमादृष्टान्तौ ।-काव्यप्रकाश की वामन
झलकीकरकृत टीका में उद्धृत, पृ० ६३९