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________________ .६८४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण स्वरूप से भिन्न स्वरूप की सम्भावना उत्प्रेक्षा है तथा अन्य वस्तु पर अन्य का रूप-समारोप रूपक । रुद्रट ने सामान्य के विवक्षित होने तथा अविवक्षित होने के आधार पर उत्प्रेक्षा तथा रूपक का भेद किया है। उत्प्रक्षा में छल, व्याज, छद्म आदि साधारण धर्म के वाचक पदों का उल्लेख होता है; पर रूपक में साधारण धर्म के रहने पर भी वह विवक्षित नहीं रहता।' पण्डितराज जगन्नाथ ने रूपक की परिभाषा में 'शब्दान्निश्चीयमानमुपमानतादात्म्यम्' का उल्लेख कर उत्प्रेक्षा से रूपक का यह भेद किया है कि रूपक में उपमेय में उपमान का आरोप करता हुआ कवि उसमें उपमान का निश्चयात्मक रूप से तादात्म्य दिखाता है, जब कि उत्प्रेक्षा में वस्तु के यथार्थ स्वरूप से भिन्न का केवल सम्भावना या अनिश्चयात्मक प्रतीति करायी जाती है।२ निष्कर्ष रूप में उत्प्रेक्षा और रूपक के भेदक तत्त्व निम्तलिखित हैं : (क) रूपक में अन्य वस्तु पर अन्य वस्तु के रूप का अध्यारोप होता है; पर उत्प्रेक्षा में किसी वस्तु के यथार्थ रूप या स्वभाव से भिन्न रूप या स्वभाव का अध्यवसान होता है। (ख) रूपक में एक वस्तु पर अन्य की निश्चयात्मक प्रतीति करायी जाती है; पर उत्प्रेक्षा में अध्यवसान अनिश्चयात्मक या सम्भावना के रूप में होता है। (ग) रूपक में सामान्य के रहने पर भी वह विवक्षित नहीं रहता; पर उत्प्रेक्षा में ( सम्भावना के वाचक मानो, जानो आदि पदों से ) सामान्य विवक्षित रहता है। दीपक और प्रतिवस्तूपमा दीपक के पदावृत्ति-भेद में धर्म की एक ही शब्द से आवृत्ति होती है। अतः, उसका स्वरूप प्रतिवस्तूपमा से स्पष्टतः भिन्न है। अर्थावृत्ति दीपक में १. उत्प्रेक्षायामप्यभेदो विद्यते, ततस्तन्निरासार्थमाह-अविवक्षितसामा न्येति । सदप्यत्र सामान्यं न विवक्ष्यते। 'सिंहो देवदत्त इति । उत्प्रेक्षायां तु छलछद्मव्याजव्यपदेशादिभिः शब्दै रुपमानोपमेययोरभेदो भेदश्च विवक्षित इति। परमार्थतस्तूभयत्राभेद एवेति ।-रुद्रट, -काव्यालङ्कार ८-३८ की वृत्ति पृ० २६१ द्रष्टव्य-जगन्नाथकृत रूपकपरिभाषा पृ० ३५४ तथा—निश्चीयमानमिति विशेषणात्सम्भावनात्मनो नूनं मुखं चन्द्र इत्याद्य त्प्रेक्षाया व्यावृत्तिः ।-रसगङ्गाधर, पृ० ३५५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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