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________________ ६८६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण (ख) अर्थावृत्ति दीपक केवल साधर्म्य से सम्भव है, वैधर्म्य से नहीं; पर प्रतिवस्तूपमा साधर्म्य तथा वैधर्म्य-दोनों से सम्भव है। (ग) दीपक में धर्म का सकृत् उपादान होता है, पर प्रतिवस्तूपमा में समान धर्म का वस्तुप्रतिवस्तुभाव से दो बार उपादान होता है। दीपक और उपमा दीपक में भी प्रकृत तथा अप्रकृत के सजातीय धर्म-सम्बन्ध का पर्यवसान उपमा में होता है; पर उपमा से दीपक का यह भेद है कि दीपक में सादृश्यवाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता । अतः, उसमें उपमा सदा व्यङग्य ही होती है। उद्योतकार का मत है कि दीपक में जो उपमा व्यङग्य होती है वह वाच्य का उपकारक होती है । अतः, वह गुणीभूत व्यङग्य ही होती है, ध्वनि नहीं।' इस प्रकार उपमा से दीपक का स्पष्ट भेद है। विवरण में भी इसी आधार “पर उपमा और दीपक का भेद-निरूपण किया गया है ।२ उत्प्रेक्षा और अपह नुति रुद्रट ने उत्प्रेक्षा और अपह्नति अलङ्कारों में इस आधार पर भेद किया है कि उत्प्रेक्षा में व्याज, छल, आदि शब्दों से उपमेय की सत्ता भी स्वीकार की जाती है; पर अपह्न ति में उपमेय का सर्वथा अपह्नव अर्थात् उसकी सत्ता का सर्वथा निषेध होता है। उत्प्रेक्षा में प्रकृत में अप्रकृत की सम्भावना के लिए प्रकृत का सर्वथा निषेध आवश्यक नहीं, पर अपह्न ति में अनिवार्यतः प्रकृत का निषेध कर अप्रकृत का स्थापन होता है । ३ रुय्यक के अनुसार अपह्न ति आरोपगर्भ अलङ्कार है और उत्प्रेक्षा अध्यवसाय-गर्भ ।४ इस आधार पर भी उत्प्रेक्षा १. ..."सा चोपमा व्यङ ग्यैव, वाचक (इवादिशब्द) विरहात् । व्यङ्ग याया अप्यस्याः वाच्योपकारकत्वात् गुणीभूतव्यङ ग्यत्वमेव न तु ध्वनित्वम् । अतोऽत्र नोपमाशङ्कत्युद्योते स्पष्टम् ।। -उद्योत से बालबोधिनी में उद्धृत, पृ० ६३६ २. प्रथमप्रभेदस्थले उपमाप्रतीति विना वाक्यार्थस्य पर्यवसानात् नोपमा प्रथमं बोध्यते किं तु व्यज्यते इति नात्रोपमा।-काव्यप्रकाश, विवरण से उद्धृत, वही, पृ० ६३६ ३. उत्प्रेक्षायां व्याजादिशब्दैरुपमेयस्य सत्त्वमप्युच्यते, इह (अपह्न तौ) तु सर्वथैवापह्नव इति विशेष ।-रुद्रट, काव्यालङ्कार, ८, ५७ की ___टीका पृ० २७१ ४. आरोपप्रस्तावादारोपविषयापह्न तावारोप्यमाणप्रतीतावपह्न त्याख्योऽलङ्कारः । तथा अध्यवसाये व्यापारप्राधान्ये उत्प्रेक्षा। -रुय्यक, अलङ्कार सूत्र, २० की वृत्ति तथा सूत्र २१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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