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________________ अलङ्कारों का स्वरूप - विकास विकल्प रुय्यक ने विकल्प की कल्पना अलङ्कार के रूप में की। दो विरोधी विचार जब एक साथ समान बल के साथ मन में उठते हैं तो उस मनःस्थिति को विकल्प की स्थिति कहते हैं । रुय्यक की विकल्प अलङ्कार-धारणा ऐसी ही मनोदशा — विकल्प की मनोदशा — पर आधृत है । इस अलङ्कार की परिभाषा में रुय्यक ने कहा है कि समान बल वाले विरोधी अर्थों की (विचारों की ) योजना में विकल्प अलङ्कार होता है । ' अभिप्राय यह कि समान प्रमाण से युक्त होने के कारण तुल्यबल वाले दो पदार्थों का एक ही समय एकत्र संयोजन जिनमें से एक का चयन करना हो, विकल्प अलङ्कार है । रुय्यक ने औपम्यगर्भ होने में विकल्प की चारुता मानी है । उन्होंने विकल्प को समुच्चय का प्रतिपक्षी कहा है । विश्वनाथ ने रुय्यक की विकल्प धारणा को स्वीकार करते हुए उसमें कविचातुरी का उल्लेख किया है । इस प्रकार उनके अनुसार जहाँ कवि तुल्यबल वाले विरोधी पदार्थों का चातुरीपूर्ण निबन्धन करता हो, वहाँ विकल्प अलङ्कार होगा । * अप्पय्य दीक्षित ने भी रुय्यक, विश्वनाथ आदि की विकल्प- धारणा को ही स्वीकार किया है । उन्होंने विकल्प की परिभाषा में कवि चातुरी आदि का उल्लेख आवश्यक नहीं समझ कर केवल तुल्यबल वाले पदार्थों के विरोध में विकल्प अलङ्कार माना है । 3 पण्डितराज जगन्नाथ ने भी विकल्प-विषयक प्राचीन मान्यता को ही स्वीकार किया, किन्तु उसकी परिभाषा में थोड़ा परिष्कार किया । उनके अनुसार तुल्यबल वाले पदार्थों की एक ही समय एकत्र प्राप्ति तो सम्भव नहीं, पर विरोधी पदार्थों की पाक्षिकी प्राप्ति सम्भव है । अतः उन्होंने विकल्प की परिभाषा में कहा कि तुल्यबल वाले पदार्थों की पाक्षिकी प्राप्ति विकल्प है । रुय्यक की तरह १. तुल्यबलविरोधो विकल्पः । -- रुय्यक, अलंकारसूत्र, ६४ २. विकल्पस्तुल्यबलयोर्विरोधश्चातुरीयुतः । [ ६४१ ३. विरोधे तुल्यबलयोर्विकल्पालंकृतिर्मता । ४१ - विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, १०६ - अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द, ११४ —जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७७३ ४. विरुद्धयो: पाक्षिकी प्राप्तिर्विकल्पः ।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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