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________________ ६२८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण में समाहित माना । विश्वनाथ, अप्पय्य दीक्षित आदि ने इसी मत को स्वीकार किया । इस प्रकार समाहित के सम्बन्ध में तीन मत आये - ( १ ) कार्य की सिद्धि में सहायक का अनायास उपस्थित हो जाना, (२) रस-भाव के प्रशम का निबन्धन तथा ( ३ ) रस भाव के प्रथम का गौण होना । द्वितीय मत रस- सिद्धान्त के अनुयायियों को मान्य नहीं । समाहित विषयक प्रथम मत समाधि नामक अलङ्कार के रूप में स्वीकृत हुआ है। प्रशम का अङ्गत्व – समाहित के सम्बन्ध में मान्य है स्पष्ट है कि समाहित के विषय में जो दो मत प्रचलित थे, उन्हीं में से एक ने समाधि को जन्म दिया । एक समाहित के विषय में दो मत के आधार पर दो अलङ्कार कल्पित हुए । तृतीय मत - रस-भाव । भावोदय, भावसन्धि तथा भावशबलता की धारणा पर इन्हीं नाम के तीन रसवदादि अलङ्कार भी स्वीकृत हैं । भावोदय के गौण हो जाने पर भावोदय अलङ्कार, भाव- सन्धि के अन्य के अङ्ग हो जाने पर भावसन्धि अलङ्कार तथा भावशबलता के अपराङ्गत्व में भावशबलता अलङ्कार स्वीकृत हैं । भाविक भाविक या भाविकत्व को भामह ने प्रबन्ध का गुण कहा था । उनके अनुसार प्रबन्ध का वह गुण, जिसमें कवि के वर्णन - कौशल से भूत और भावी अर्थ प्रत्यक्ष से हो उठते हैं, भाविकत्व कहलाता है ।२ काव्य के जिस अंश में भूत तथा भावी अर्थ का ऐसा वर्णन हो कि वे प्रत्यक्ष से हो उठे, उस अंश में भाविकत्व, माना जायगा । इसी तथ्य को दृष्टि में रखकर 'भट्टिकाव्य' की 'जयमङ्गला' टीका में उस काव्य के एक अध्याय को भाविकत्व का उदाहरण माना गया है । विचार कर देखें तो वर्णित अर्थ का प्रत्यक्षायमाणत्व किसी काव्य की सफलता की आवश्यक शर्त है । कवि अतीत अर्थ का वर्णन करे या अनागत अर्थ की कल्पना करे, उसकी कल्पना में इतनी शक्ति तो होनी ही १. भावस्य चोदये सन्धौ मिश्रत्वे च तदाख्यकाः । - विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, १२५ २. भाविकत्वमिति प्राहुः प्रबन्धविषयं गुणम् । प्रत्यक्षा इव दृश्यन्ते यत्रार्था भूतभाविनः ॥ - भामह, काव्यालङ्कार, ३,५२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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