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________________ [ ६१३ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ आदि ने दण्डी-सम्मत लेश-लक्षण को ही ब्याजोक्ति-लक्षण स्वीकार किया है। प्रकट वस्तु का बहाने से गोपन उनके अनुसार व्याजोक्ति का लक्षण है ।' जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि की व्याजोक्ति-धारणा मम्मट, रुय्यक आदि की धारणा से मूलतः अभिन्न है; किन्तु जयदेव आदि ने व्याजोक्ति का क्षेत्र कुछ सीमित कर दिया है। उन्हें व्याज से केवल आकार का गोपन व्याजोक्ति में इष्ट है ।२ पूर्ववर्ती आचार्यों के व्याजोक्ति-लक्षण में आकार का भी व्याज से गोपन लक्षित था। आकार-गोपन के भी उदाहरण मम्मट आदि ने दिये थे। सम्भव है, ऐसे उदाहरणों को देखकर ही जयदेव आदि ने केवल आकारगोपन तक व्याजोक्ति का लक्षण सीमित कर दिया हो। व्याजोक्ति के लक्षण में आकार-गोपन की जगह, प्रकट वस्तु-रूप के निगूहन का उल्लेख ही अधिक समीचीन जान पड़ता है । निष्कर्षतः, किसी प्रकार प्रकट हो गई वस्तु को किसी बहाने छिपाने का वर्णन व्याजोक्ति अलङ्कार माना जाता है । व्याजस्तुति तथा व्याजनिन्दा स्तुति-पर्यवसायिनी निन्दा तथा निन्दा-पर्यवसायिनी स्तुति की सुन्दर उक्तिभङ्गी में व्याजस्तुति अलङ्कार की कल्पना की गयी है। किसी की प्रशंसा के लिए सीधे प्रशंसात्मक शब्दों का प्रयोग न कर ऐसे शब्दों का प्रयोग, जिनसे आपाततः उसकी निन्दा-सी लगे; पर परिणामतः उसकी प्रशंसा का बोध हो और इसके विपरीत किसी की निन्दा के अभीष्ट होने पर उसके लिए ऐसी शब्दावली का प्रयोग जिससे आपाततः तो उसकी प्रशंसा जान पड़े; पर परिणामतः उसकी निन्दा का बोध हो-व्याजस्तुति के ये दो रूप हैं। इस अलङ्कार में स्तुति के व्याज से निन्दा तथा निन्दा के व्याज से स्तुति की जाती है । अतः, व्याजस्तुति अन्वर्था संज्ञा है। १. व्याजोक्तिश्छद्मनोद्भिन्नवस्तुरूपनिगृहनम् । . -मम्मट, काव्यप्रकाश १०,१८४, उद्भिन्नवस्तुनिगृहनं व्याजोक्तिः।-रुय्यक, अलङ्कार-सूत्र ७६ तथाव्याजोक्तिर्गोपनं व्याजादुद्भिन्नस्यापि वस्तुनः। -विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०,१२०, २. व्याजोक्तिरन्यहेतूक्त्या यदाकारस्य गोपनम् । -अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द १५३,
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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