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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [६०३ विपरीतधर्मा सम अलङ्कार के स्वरूप की कल्पना में अननुरूप वस्तु-संसर्ग-रूप' विषम के विपरीत अनुरूप वस्तुओं का संसर्ग-वर्णन अपेक्षित माना गया है। सम का स्वतन्त्र अलङ्कार के रूप में निरूपण सर्वप्रथम मम्मट ने किया। उनके पूर्व विषम के स्वरूप की स्थापना हो चुकी थी। मम्मट ने अनुकूल वस्तुओं का योग सम का प्रधान स्वरूप माना। अनेक सत् का तथा अनेक असत् का परस्पर योग इसमें दिखाया जा सकता है।' सम-सम्बन्धी इस मूल धारणा को सभी परवर्ती आचार्यों ने स्वीकार किया है । जयदेव तथा अप्पय्य ने विषम के उपरिलिखित तीन स्वीकृत रूपों के विपर्यय-रूप में सम के भी तीन रूप माने हैं—(क) अनुरूप वस्तुओं की सङ्घटना, (ख) कारण से कार्य की अनुरूपता तथा (ग) आरब्ध कार्य के अनुकूल, विना किसी अनिष्ट के फल-प्राप्ति ।२ जिस प्रकार विषम के उक्त तीन रूप स्वीकार्य हैं, उसी प्रकार उनके विपर्यय-रूप सम के भी ये तोन भेद मान्य हैं। विरोध विरोधाभास अलङ्कार के विवेचन-क्रम में हम यह देख चुके हैं कि कुछ आचार्यों ने उसे भी विरोध संज्ञा से अभिहित किया है; किन्तु विरोधाभास से स्वतन्त्र विरोध अलङ्कार की भी कल्पना की गयी है। विरोधाभास में वस्तुओं के विरोध का केवल आभास रहता है। आपाततः, विरुद्ध जान पड़ने वाली बातों में तात्त्विक अविरोध की धारणा निहित रहती है। विरोध में परस्पर' विरोधी पदार्थों के संसर्ग-वर्णन की धारणा व्यक्त की गयी है । सादृश्य की तरह विरोध भी अनेक अलङ्कारों का मूलभूत तत्त्व है। अतः, कुछ आचार्य विरोध-नामक स्वतन्त्र अलङ्कार की कल्पना उचित नहीं मानते । वे विरोध को अनेक अलङ्कारों को अनुप्राणित करने वाला तत्त्व ही मानते हैं। इस प्रकार कुछ आचार्यों ने विरोध का विरोधाभास के पर्याय के रूप में प्रयोग कर दिया है । विरोधाभास के पर्याय के रूप में प्रयुक्त विरोध प्रस्तुत सन्दर्भ में विवेच्य नहीं। विरुद्ध पदार्थों की घटना के रूप में जिस विरोध को स्वीकृति मिली है तथा जिसे कुछ आचार्य सभी विरोधमूलक अलङ्कार का समान १. समं योग्यतया योगो यदि सम्भावितः क्वचित् । तथातत्सद्योगे, असद्योगे च । -मम्मट, काव्यप्रकाश १०, १६३ तथा वृत्ति पृ० २८४० २. द्रष्टव्य-अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द ६१, ६३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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