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________________ ६०२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण सम्बन्ध के खण्डन तथा वस्तुओं के सम्भव-सम्बन्ध के खण्डन में तात्त्विक भेद नहीं है, भेद केवल कथन के ढंग का है। अतः, दोनों को एक साथ इस रूप में परिभाषित करना ही अधिक समीचीन है कि 'वस्तुओं के सम्बन्ध की अनुपपत्ति का वर्णन विषम का एक रूप है।' मम्मट के विषम का दूसरा रूपा भी रुद्रट के वास्तव विषम के एक रूप से अभिन्न है। रुद्रट के अतिशयमूलक विषम की अवतारणा मम्मट ने अपने विषम के तीसरे और चौथे रूप में की है। अशक्त कर्ता का बड़ा काम भी कर देने, सशक्त कर्ता का छोटा काम भी न कर पाने आदि के वर्णन में रुद्रट ने जो विषम माना था, उसे मम्मट ने अलङ्कार के स्वतन्त्र प्रकार के रूप में स्वीकार नहीं किया। ____ रुय्यक ने विषम के तीन प्रकार स्वीकार किये-(१) कारण से विरूप कार्य की उत्पत्ति, (२) किसी कार्य के साधन में उद्यत कर्ता के कार्य से उद्दिष्ट फल की जगह अनर्थ की प्राप्ति तथा अननुरूप या विरूप वस्तुओं की सङ्घटना। अननुरूप वस्तुओं का संसर्ग विषम का प्रधान लक्षण माना गया है।' स्पष्टतः रुय्यक की धारणा मम्मट की विषम-धारणा से अभिन्न है ।। रुय्यक के विरूप कार्योत्पत्ति-रूप विषम-भेद में मम्मट के गुण-विरोध तथा क्रिया-विरोध भेदों का समाहार है। विश्वनाथ, जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि. ने मम्मट, रुय्यक की विषम-धारणा को ही स्वीकार किया है। जगन्नाथ ने रुय्यक की तरह अननुरूप वस्तुओं के संसर्ग को विषम का प्रधान लक्षण मानः कर मम्मट, रुय्यक आदि के द्वारा कल्पित विषम के सभी रूपों को उसका भेद माना है। निष्कर्ष यह कि विरूप या अननुरूप वस्तुओं का सम्बन्ध विषम अलङ्कार है। इसके सम्भव रूप हैं—(क) विरूप वस्तुओं की सङ्घटना अथवा सङ्घटित वस्तुओं के सम्बन्ध का अनुचित या अनुपपन्न होना (ख) कारण से विपरीत धर्म वाले कार्य की उत्पत्ति तथा (ग) आरब्ध कार्य से इष्ट फलः की प्राप्ति न होकर उलटे अनर्थ की प्राप्ति । सम के विपर्यय-रूप को रुय्यक आदि ने विषम कहा है। अतः, विषम के १. विरूपकार्यानर्थयोरुत्पत्तिविरूपसङ्घटना च विषमम् ।-रुय्यक, अलं० सू० ___४५-भेद के लिए सूत्र ४५ की वृत्ति द्रष्टव्य-पृ० १६१ २. द्रष्टव्य-विश्वनाथ, साहित्यदर्पण १०-६१ तथा ___ अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द ८८, ६०. ३. द्रष्टव्य-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर पृ०७०४-५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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