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________________ ५९८] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण निमित्ता तथा अनुक्तनिमित्ता भेद कर अनुक्तनिमित्ता के चिन्त्य तथा अचिन्त्या निमित्ता भेद किये हैं। अधिक तथा अल्प ___ अधिक तथा अल्प अलङ्कार आधाराधेय-भाव-सम्बन्ध पर आधृत है। सामान्यतः, आधेय की अपेक्षा आधार अधिक विस्तृत होता है; पर जहां इसके विपरीत आधार से आधेय की दीर्घता का चमत्कारपूर्ण वर्णन होता है, वहाँ भधिक नामक अलङ्कार माना जाता है। वर्ण्य आधेय की अतिशय दीर्घता को विवक्षा से उसे बड़े आधार से भी बड़ा कहा जाता है। आधेय के महत्त्व की स्थापना के लिए आधार की भी दीर्घता का निरूपण किया जाता है। छोटे आधार से बड़ा कहने से आधेय की गुरुता की व्यञ्जना नहीं हो सकती। मतः, अधिक अलङ्कार में आधार की दीर्घता का निर्देश करते हुए आधेय का उससे भी अधिक बताया जाना अपेक्षित माना गया है। इसके साथ ही पृथुल माधेय का वर्णन करते हुए उससे भी आधार का आधिक्य-वर्णन अधिक का दूसरा रूप माना गया है। यों तो आधेय से आधार में आधिक्य की धारणा निहित ही रहती है; पर आधेय की अतिदीर्घता के निर्देश के साथ उसकी अपेक्षा भी आधार की अधिक दीर्घता के वर्णन में अतिशय का तत्त्व रहता है। अतः, उसे भी अलङ्कार माना जाता है। आचार्य दण्डी ने अधिक अलङ्कार की स्वतन्त्र सत्ता नहीं मानी थी, फिर भी उन्होंने अतिशयोक्ति के एक भेद के रूप में आश्रयाधिक्य के स्वरूप का निरूपण किया था। उसमें आधेय के महत्त्व की विवक्षा से आधार की विपुलता का वर्णन अपेक्षित माना गया था। रुद्रट ने अधिक को अतिशयोक्तिमूलक स्वतन्त्र अलङ्कार माना और उसके स्वरूप का निरूपण स्वतन्त्र रूप से किया। उन्होने अधिक के दो रूपों की कल्पना की--(१) जहाँ एक कारण से परस्पर विरुद्ध दो वस्तुएं उत्पन्न हों तथा जहाँ एक कारण से परस्पर विरुद्ध बल वाली क्रियाओं से युक्त दो वस्तुएँ उत्पन्न हों, वहाँ अधिक अलङ्कार होता है। (२) जहाँ विशाल आधार १. मम्मट, काव्यप्रकाश, पृ० २६. २. रुय्यक, अलङ्कारसर्वस्व, पृ० १५६ ३. द्रष्टव्य-दण्डी, काव्यादर्श, २,२१६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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