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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ५८७ गुणों पर आधृत इस अलङ्कार की कल्पना कर इसके लक्षण में कहा है कि जहाँ एक वस्तु का प्रबल गुण अपने समान अधिकरण में उत्पन्न, किन्तु उससे भसदृश अन्य गुण को तिरोहित कर लेता है, वहाँ पिहित अलङ्कार होता है । " पिहित अन्वर्थं अभिधान है । एक के गुण से दूसरे का आच्छादन इसकी मुख्य प्रकृति है । इसमें रुद्रट के अनुसार निम्नलिखित बातें अपेक्षित हैं : : (क) गुण से अन्य का आच्छादन, (ख) समान आधार में रहने वाली वस्तुओं में से ही एक के प्रबल गुण से अन्य का आच्छादन, (ग) असमान गुण का आच्छादन तथा (घ) प्रकट या आविर्भूत गुण का आच्छादन । मीलित से इसका भेद यह है कि इसमें असमान चिह्न वाली वस्तु का पिधान दिखाया जाता है, जब कि मीलित में समान चिह्न वाली वस्तु से वस्त्वन्तर का आच्छा होता है । समान गुण में तद्गुण सम्भव होता है । पिहित की प्रकृति तद्गुण से भिन्न है । रुद्रट के तद्गुण का एक रूप असमान गुण वाली वस्तु के गुण-ग्रहण में भी होता है; पर पिहित इस दृष्टि से उससे भिन्न है कि इसमें गुण ग्रहण नहीं दिखाया जाता, गुण का पिधान दिखाया जाता है । भोज ने पिहितको स्वतन्त्र अलङ्कार नहीं मानकर मीलित का एक भेद माना है । उन्होंने पिहित के विपरीत उसका अपिहित भेद भी माना है । मीलित, तद्गुण, अतद्गुण, सामान्य, विशेषक, अनुगुण, पूर्वरूप, उन्मीलित, पिहित आदि एक ही मूलतत्त्व पर अवलम्बित अलङ्कार है । गुण की समता,. संसर्ग होने पर एक वस्तु के गुण का दूसरे पर प्रभाव आदि इन अलङ्कारों का स्वरूप-विधान करते हैं । अतः, इनके बीच बहुत सूक्ष्म भेद ही देखा जा सकता है । हम अपरत्र इस तथ्य पर विचार कर चुके हैं कि प्राचीन आचार्य ' अलङ्कारों की मूल प्रकृति पर समन्वित रूप से विचार करते थे, पीछे थोड़े-थोड़े भेद से अनेक अलङ्कारों की कल्पना की प्रवृत्ति आयी । 3 समान तत्त्व पर आधृत मीलित आदि उक्त अनेक अलङ्कारों की कल्पना इसी प्रवृत्ति का परिणाम है । १. यत्रातिप्रबलतया गुणः समानाधिकरणमसमानम् । अर्थान्तरं पिदध्यादाविभूतमपि तत्पिहितम् ॥ — रुद्रट, काव्यालङ्कार, ६, ५० २. द्रष्टव्य - भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण ३, ४१ ३. द्रष्टव्य - प्रस्तुत ग्रन्थ अध्याय २
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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