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________________ ५८८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ आदि ने पिहित अलङ्कार का निरूपण नहीं किया है। कारण स्पष्ट है। मीलित, तद्गुण आदि से रुद्रट के पिहित का स्वरूप इतना मिलता-जुलता था कि उसके स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना उन्हें अनावश्यक जान पड़ी होगी। जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि ने पिहित को स्वतन्त्र अलङ्कार माना; पर उसके सम्बन्ध में उन्होंने रुद्रट की धारणा को सर्वथा अस्वीकार कर उसके नवीन रूप की कल्पना की। इसका सम्बन्ध वस्तु के गुण से नहीं मानकर "उन्होंने व्यक्ति की साभिप्राय चेष्टा से माना है । दूसरे के वृत्तान्त को जानने वाला जहाँ साभिप्राय चेष्टा करे, वहाँ उनके अनुसार पिहित अलङ्कार होगा।' 'खण्डिता नायिका प्रातःकाल प्रिय को घर आया देख उसके लिए विस्तर ठीक करने लगी।' इस वर्णन में नायिका की यह चेष्टा साभिप्राय मानी गयी है । वह नायक का वृत्तान्त समझ चुकी है कि वह परकीया के साथ रङ्गरभस में " रात बिताकर आ रहा है। अतः, उसके विश्राम के लिए वह बिछावन बिछा देती है । उसकी इस चेष्टा में नायक के लिए जो मौन उपालम्भ छिपा है, उसीमें अलङ्कारत्व है । वह अभिप्राय छिपा रहने के कारण पिहित कहा गया है। "जयदेव तथा अप्पय्य दीक्षित ने साकूत चेष्टा में सूक्ष्म तथा पिहित—दो अलङ्कार माने हैं । सूक्ष्म में दूसरे का आशय समझ कर साकूत चेष्टा का वर्णन होता है और पिहित में दूसरे के वृत्तान्त को समझ कर साकूत चेष्टा करने का वर्णन होता है। उद्योतकार ने इसीलिए इस पिहित को सूक्ष्म में अन्तर्भूत माना है। यह उचित ही है। दोनों में सौन्दर्य साकूत अर्थात् साभिप्राय चेष्टा का ही है। अत:, प्राशय और वृत्तान्त के जानने के आधार पर साकूत चेष्टा में अलग-अलग अलङ्कार मानना युक्तिसङ्गत नहीं। इस तरह पिहित के दो रूप ‘कल्पित हुए-(१) प्रबल गुण से समान अधिकरण वाले असमान आविर्भूत गुण का आच्छादन और (२) दूसरे का वृत्तान्त जानने वाले की साभिप्राय चेष्टा । पीछे चल कर प्रथम मीलित आदि में तथा द्वितीय सूक्ष्म में अन्तर्भूत मान लिया गया। विशेष रुद्रट ने विशेष अलङ्कार के तीन रूपों की कल्पना की। उसके प्रथम रूप १. पिहितं परवृत्तान्तज्ञातुः साकूतचेष्टितम् । -अप्पय्य दीक्षित, कुवलयानन्द, १५२ २. द्रष्टव्य-काव्यप्रकाश, उद्योत, उद्धृत, बालबोधिनी, पृ० ७१३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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