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________________ ५८६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण उद्योतकार का मत है कि उन्मीलित का उक्त स्वरूप मीलित का ही विशिष्ट रूप है । वस्तुतः, उसका चमत्कार मुख्यतः दो वस्तुओं की अभेद-प्रतीति में ही है। ___पण्डितराज जगन्नाथ ने एक अलङ्कार के स्वभाव के प्रतिपक्षी अनेक अलङ्कारों की कल्पना अनावश्यक मानी है । अतः, उन्हें उन्मीलित का स्वतन्त्र अलङ्कार माना जाना अभीष्ट नहीं ।२ विशेषक सामान्य का प्रतिपक्षी है । उसका स्वरूप सामान्य के स्वरूप की अपेक्षा रखता है। जब तक दो वस्तुओं में ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की जाय कि दोनों के व्यावर्त्तक वैशिष्ट्य का ज्ञान न रहे, तब तक दो वस्तुओं के वैशिष्ट्य का उद्घाटन चमत्कारजनक नहीं होगा। सामान्य की स्थिति की कल्पना कर किसी कारण से उनके वैशिष्ट्य का उद्घाटन विशेषक माना जायगा। 'कुवलयानन्द' में कमल-वन में कमलमुखी के प्रविष्ट होने पर कमल और मुख के वैशिष्ट्य का परिलक्षित न होना सामान्य का उदाहरण दिया गया है। उसी उदाहरण के स्थिति-विशेष की कल्पना कर 'चन्द्रमा के उदितः होने पर (कमल के मलिन हो जाने से) मुख और कमल का वैशिष्ट्य दिखाई पड़ना' विशेषक का उदाहरण माना गया है। 3 उद्योतकार ने जिस युक्ति से उन्मीलित को मीलित का अवस्था विशेष सिद्ध किया है, उसी युक्ति से विशेष को भी सामान्य का ही एक विशिष्ट रूप माना जा सकता है। सामान्यप्रतिपक्षी होने के कारण जगन्नाथ इसे स्वतन्त्र अलङ्कार नहीं मानते ।। अप्पय्य दीक्षित के मतानुयायी हिन्दी के आचार्यों ने उन्मीलित तथा विशष का लक्षण-निरूपण 'कुवलयानन्द' के अनुसार किया है। उन्मीलित तथा विशेष का जो रूप जयदेव तथा अप्पय्य दीक्षित के द्वारा कल्पित हुआ, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। पिहित मीलित, तद्गुण आदि की तरह पिहित की धारणा भी वस्तुओं के गुण के पारस्परिक प्रभाव के विचार से आरम्भ हुई थी। रुद्रट ने वस्तुओं के १. द्रष्टव्य-काव्यप्रकाश, उद्योत, उद्ध त, बालबोधिनी, पृ० ७२८ २. द्रष्टव्य-रसगङ्गाधर, पृ० ८१७ ३. द्रष्टव्य-अप्पय्यदीक्षित, कुवलयानन्द, १४८ ४. द्रष्टव्य-रसगङ्गाधर पृ० ८१७
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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