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अलङ्कारों का स्वरूप विकास
[ ५७९ की स्वभावसिद्ध तरलता से अनुराग जन्य चिह्न का तथा दूसरे में हिम के कारण आगन्तुक कम्प से भयजन्य कम्प का तिरस्कार दिखाया गया है । "
ears ने मीलित को निमीलित कहा है। उन्होंने वस्तु से वस्त्वन्तर का निगूहन निमीलित का लक्षण देकर उसके स्पष्टीकरण में सहज या आगन्तुक समान चिह्न से वस्तु का निगूहन अपेक्षित माना । इसी आधार पर उन्होंने सामान्य से इसका भेद-निरूपण किया है। उनकी धारणा मम्मट की धारणा के समान ही है । दोनों के उदाहरण भी समान हैं । रुय्यक ने इसमें उत्कृष्ट गुण से निकृष्ट गुण का तिरस्कार अपेक्षित माना है । विश्वनाथ ने भी तुल्य चिह्न वाली वस्तु से वस्तु का निगूहन मीलित का लक्षण माना है ।
अप्पय्य दीक्षित ने मीलित में भाव, तथा सहज, आगन्तुक आदि धर्म की चर्चा नहीं की । जहाँ सादृश्य के कारण दो वस्तुओं में भेद ही लक्षित नहीं हो, वहाँ उनके अनुसार मीलित अलङ्कार होता है । उन्होंने सामान्य से इसका भेद केवल इस आधार पर किया है कि सामान्य में विशेष परिलक्षित नहीं होता; पर इसमें दो वस्तुओं में अभेद की प्रतीति होती है । मीलित, सामान्य, तद्गुण आदि के रूप में इतना साम्य है कि सबके बीच विभाजक तत्त्व का उल्लेख परिभाषा में आवश्यक है । समान चिह्न वाली वस्तु में, चाहे वह चिह्न आगन्तुक हो या सहज, अन्य वस्तु के स्वरूप के तिरोहित हो जाने का वर्णन ही मीलित का उपयुक्त लक्षण जान पड़ता है ।
सामान्य
सामान्य अलङ्कार के स्वरूप की कल्पना सर्वप्रथम आचार्य मम्मट ने की । इसमें प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत में समान गुण के प्रतिपादन के लिए दोनों का ऐक्यनिबन्धन अपेक्षित माना गया है । मम्मट की परिभाषा है— दो वस्तुओं में गुणसाम्य की विवक्षा से प्रस्तुत का अप्रस्तुत के साथ ऐकात्म्य - निबन्धन अर्थात् अभेद
१. द्रष्टव्य - मम्मट, काव्यप्रकाश, पृ० २८८-८९
२. वस्तुना वस्त्वन्तरनिगूहनं निमीलितम् ।
तथा- - सहजेनागन्तुकेन वा लक्ष्मणा यद् वस्त्वन्तरेण वस्त्वन्तरं निगृह्यते, तदन्वर्थाभिधानं निमीलितम् ।
—रुय्यक, अलङ्कार सूत्र ७० तथा वृत्ति पृ० २०९ ३. मीलितं यदि सादृश्याद्भेद एव न लक्ष्यते ।
- अप्पय्य दीक्षित कुवलयानन्द १४६