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५७८ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण प्रतिक्रिया या भाव-विशेष के बाह्य चिह्न का व्यक्ति के स्वभावसिद्ध या अवस्था-विशेष में जायमान चिह्न से तिरस्कृत होने का वर्णन हो तो वहाँ मीलित अलङ्कार होगा। भाव-विशेष के बाह्य चिह्न का तिरस्कार उसके सदृश अन्य चिह्न से ही होता है । अपने समान चिह्न में वह भावजन्य चिह्न इस तरह मिल जाता है कि उसका अस्तित्व ही नहीं जान पड़ता । अनुराग से उत्पन्न नेत्र की चञ्चलता नायिका की आँखों की चञ्चलता में इस तरह खो जाती है कि उस अनुराग-चिह्न ( नेत्र-चाञ्चल्य ) का पता ही नहीं चलता। कोप की लाली मदिरा के नशे से उत्पन्न मुख की लाली में तिरोहित हो जाती है। ऐसे वर्णन में रुद्रट क्रमशः नित्य तथा आगन्तुक धर्म से भावचिह्न के तिरस्कार-रूप मीलित का सद्भाव मानेंगे।
भोज ने वस्तुविशेष से वस्त्वन्तर का तिरस्कार मीलित का लक्षण माना। इस तरह रुद्रट के मीलित के विशिष्ट स्वरूप को छोड़कर भोज ने उसका सामान्य और व्यापक स्वरूप प्रतिपादित कर दिया। परिणामस्वरूप, अलङ्कार-शास्त्र में स्वतन्त्र रूप से प्रतिष्ठित तद्गुण, अतद्गुण, पिहित आदि अलङ्कार भी मीलित के क्षेत्र में समाविष्ट हो गये । ' अभिधीयमान तथा प्रतीयमान गुण वाली वस्तु से मीलित होने के आधार पर पूर्वोक्त चार मीलितरूपों के दो-दो भेद हो सकते हैं। __ मम्मट ने रुद्रट की मीलित-धारणा को ही बहुलांशतः स्वीकार किया है। उन्होंने रुद्रट की तरह मीलित-परिभाषा में हर्ष, कोप आदि भाव का उल्लेख नहीं किया। इतने भेद को छोड़कर मम्मट की परिभाषा रुद्रट की मीलितपरिभाषा से मिलती-जुलती है। मम्मट की मान्यता है कि जहाँ किसी वस्तु के सहज या आगन्तुक चिह्न से सादृश्य के कारण किसी वस्तु के रूप का उस चिह्न में तिरोधान वर्णित हो, वहाँ मीलित अलङ्कार होता है ।२ परिभाषा में भाव-चिह्न का उल्लेख नहीं करने पर भी मम्मट ने दोनों उदाहरणों में अनुराग तथा भय के चिह्न का तिरोभाव ही दिखाया है। एक में अपाङ्ग
१. वस्त्वन्तरतिरस्कारो वस्तुना मीलितं स्मृतम् । पिहितापिहिते चैव तद्गुणातद्गुणौ च तत् ।।
-भोज, सरस्वतीभण्ठाभरण ३,४१ २. समेन लक्ष्मणा वस्तु वस्तुना यन्निगृह्यते । निजेनागन्तुना वापि तन्मीलितमिति स्मृतम् ॥
-मम्मट, काव्यप्रकाश १०,१६७