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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ५७७ जाता है। अतः, साध्य-साधन कहने से अनुमान के चारो अङ्गों का ग्रहण हो जाता है। मम्मट की मान्यता है कि साध्य-साधन के पौर्वापर्य-कथन में कोई वैशिष्ट्य नहीं है। अतः, परिभाषा में उसका उल्लेख अनावश्यक है। रुय्यक की मान्यता मम्मट की उक्त मान्यता से अभिन्न है। रुय्यक ने इस बात पर बल दिया है कि काव्य में उक्ति की विच्छित्ति अनुमान को अलङ्कारत्व प्रदान करती है; अन्यथा काव्य और दर्शन के अनुमान में कोई भेद ही नहीं रह जाय। विश्वनाथ ने अनुमान की परिभाषा में भी विच्छित्ति पद का उल्लेख किया। उनके अनुसार साध्य-साधन का विच्छित्तिपूर्ण ज्ञान अनुमान अलङ्कार है।२ अनुमान की धारणा को सर्वविदित मानकर अप्पय्य दीक्षित ने उसे परिभाषित न कर केवल उदाहृत किया है। पण्डितराज जगन्नाथ के अनुसार अनुमितिकरण अनुमान है। __ स्पष्ट है कि अनुमान के स्वरूप के सम्बन्ध में कोई नवीन उद्भावना अलङ्कार-शास्त्र में नहीं की गयी है। दर्शन की अनुमान-धारणा को ही सभी आचार्यों ने स्वीकार किया है। उस अनुमान की प्रक्रिया का-साध्य-साधन के ज्ञान का-विच्छित्तिपूर्ण वर्णन अनुमान अलङ्कार माना जाता है। मीलित मीलित में एक वस्तु के रूप का उसीके सदृश अन्य वस्तु के रूप में तिरोहित हो जाने के वर्णन पर बल दिया गया है। एक के अन्य में तिरोभाव या मीलन के आधार पर इस अलङ्कार का अन्वर्थ अभिधान किया गया है। रुद्रट की वस्तुरूप मीलन की कल्पना भाव-सापेक्ष थी। उन्होंने हर्ष, कोप, भय आदि की भाव-दशा में व्यक्ति के स्वाभाविक आङ्गिक चिह्नों का उसके समान नित्य या आगमापायी चिह्नों से तिरस्कार मीलित का लक्षण माना था। प्रत्येक मनोभाव की कुछ आङ्गिक प्रतिक्रिया हुआ करती है। यदि उस १. द्रष्टव्य-मम्मट, काव्यप्र० १० पृ० २७५-७६ तथा रुय्यक, अलङ्कार ___ सर्वस्व, पृ० १७६-८२ २. द्रष्टव्य-विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, १०, ८२ ३. द्रष्टव्य-जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ७५३ ४. तन्मीलितमिनि यस्मिन् समानचिह्नन हर्षकोपादि । अपरेण तिरस्क्रियते नित्येनागन्तुकेनापि ॥-रुद्रट, काव्यालं० ७,१०६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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