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________________ ५७६ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण रुद्रट ने सर्वप्रथम काव्यालङ्कार के क्षेत्र में अनुमान की अवतारणा की। अनुमान अलङ्कार के स्वरूप का निरूपण करते हुए उन्होंने कहा कि जहां कवि पहले परोक्ष साध्य वस्तु अर्थात् कार्य को बताकर पुनः उसके साधक अर्थात् कारण का उल्लेख करे तथा इसके विपरीत जहाँ पहले साधक या कारण का उल्लेख कर पीछे कार्य का उल्लेख करे, वहाँ अनुमान अलङ्कार होता है।' कार्य को देखकर उसके कारण का तथा कारण से उसके कार्य का अनुमान होता है। कवि जब उक्त रीति से साध्य-साधक का उपन्यास करता है तो वह अनुमान अलङ्कार का विधान करता है । रुद्रट ने अनुमान के एक और रूप की कल्पना कर कहा है कि जहां बलवान कारण को देखकर अनुत्पन्न कार्य को भी उत्पन्न अथवा भावी ( उत्पद्यमान ) कह दिया जाय, वहाँ भी अनुमान अलङ्कार होता है ।२ इसमें भी कार्य-कारण की रीति पूर्ववत् ही रहती है अर्थात् पहले कार्य का फिर कारण का उपन्यास; तथा पहले कारण का फिर कार्य का उपन्यास किया जाता है। भोज ने अनुमान के अनेक भेदोपभेदों का निरूपण किया है। उन्होंने अनुमान की मूल धारणा में कोई परिवर्तन नहीं किया। मम्मट तथा रुय्यक ने साध्य तथा साधन का कथन अनुमान का मूल लक्षण माना है। प्रश्न यह हो सकता है कि अनुमान के पक्ष, साध्य, हेतु तथा दृष्टान्त; ये चार आवश्यक अङ्ग हैं, फिर केवल साध्य-साधन-कथन में अनुमान कैसे होगा ? मम्मट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पक्ष-सत्त्व, अन्वय तथा व्यतिरेक से हेतु तीन प्रकार के होते हैं। हेतु के ये तीनों रूप साधन कहे जाते हैं। पक्ष-सत्त्व, सपक्ष-सत्त्व तथा विपक्षासत्व; इन तीन रूपों से अनुमान कराया जाता है। वह पक्ष कहलाता है। इस प्रकार पक्ष में हेतु की वृत्ति, सपक्ष में हेतु की अन्वय-वृत्ति तथा विपक्ष में उसकी व्यतिरेक-वृत्ति रहती है। दूसरे शब्दों में, पक्ष में हेतु की वृत्ति को पक्ष-धर्मत्त्व, सपक्ष में हेतु की वृत्ति को सपक्ष-सत्त्व तथा विपक्ष में हेतु की अवृत्ति को विपक्षासत्त्व कहा. १. वस्तु परोक्षं यस्मिन्साध्यमुपन्यस्य साधकं तस्य । पुनरन्यदुपन्यस्येद्विपरीतं च तदनुमानम् ।।-रुद्रट, काव्यालं. ७,५६ २. यत्र बलीयः कारणमालोक्याभूतमेव भूतमिति । भावीति वा तथान्यत्कथ्येत तदन्यदनुमानम् ॥-वही, ७,५९ ३. द्रष्टव्य-भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण, पृ०, ३२५-२८ .
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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