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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [५७५ उनके मतानुसार किसी अभिप्राय से गूढ़ उत्तर दिया जाना उत्तर का एक रूप है। 'पथिक के द्वारा नदी पार करने के लिए उचित स्थान पूछे जाने पर नायिका का वेतस-कुञ्ज की ओर सङ्केत करना' इसका उदाहरण दिया गया है। अभिसार के उपयुक्त स्थान का उत्तर में निर्देश साभिप्राय है। इस तरह उत्तर का साभिप्राय तथा गूढ़ होना अपेक्षित माना गया है। चित्रोत्तर को उत्तर का दूसरा भेद माना गया है, जिसमें प्रश्न तथा उत्तरान्तर से अभिन्न उत्तर का निबन्धन होता है। इसके स्वरूप पर पूर्ववर्ती आचार्य चित्र नामक शब्दगत अलङ्कार के प्रसङ्ग में विचार कर चुके थे। इसमें शब्द-प्रयोग के चमत्कार की प्रधानता के कारण इसे शब्दालङ्कार माना जाता रहा है। पण्डितराज जगन्नाथ ने रुद्रट आदि की तरह उन्नीत तथा निबद्ध प्रश्न वाले उत्तर को उत्तर अलङ्कार के दो भेद माने हैं। ये दो प्रकार के उत्तर प्रश्न तथा उत्तर में से दोनों के अथवा एक के साभिप्राय तथा निरभिप्राय होने के आधार पर चार-चार प्रकार के होते हैं। इस तरह इसके आठ मुख्य भेद हैं। इन भेदों के और भी उपभेद कल्पित हैं।' स्पष्ट है कि जगन्नाथ ने पूर्ववर्ती सभी आचार्यों की उत्तर-धारणा को समन्वित कर स्वीकार किया है। निष्कर्षतः, उत्तर के ये रूप मान्य हैं-(१) उत्तर सुनकर प्रश्न का उन्नयन, (२) अनेक प्रश्नों तथा उनके वैदग्ध्यपूर्ण उत्तरों का एकत्र निबन्धन तथा (३) साभिप्राय गूढ़ उत्तर । एक ही पद में समस्त-रूप से प्रश्न तथा उत्तर का संग्रथन भी हो सकता है, जिसे चित्रोत्तर कहते हैं। अनुमान ज्ञान के प्रमाण के रूप में अनुमान के स्वरूप पर दर्शन में विचार चल रहा था। न्याय की अनुमान-मीमांसा मानव मनीषा के विस्मयजनक उत्कर्ष का निदर्शन है। दर्शन में तर्क-वितर्क की पद्धति से अनुमान का जो स्वरूप स्थापित हुआ, उसकी काव्यात्मक परिणति उसी नाम से काव्य के एक अलङ्कार के रूप में हुई। अनुमान का रमणीय वर्णन काव्य का एक अलङ्कार स्वीकृत हुआ। १. किञ्चिदाकूतसहितं स्याद्गूढोत्तरमुत्तरम् । तथाप्रश्नोत्तरान्तराभिन्नमुत्तरं चित्रमुच्यते ॥ -अप्पय्यदीक्षित, कुवलयानन्द १४६-५. २. द्रष्टव्य-जान्याथ, रसगङ्गाधर, पृ० १२०-२४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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