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' ५७४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
भोज ने उत्तर के सम्बन्ध में विलक्षण धारणा प्रकट की है। उनके अनुसार • पदार्थों का सार-निर्धारण अर्थात् प्रसिद्ध वस्तुओं में से किसीका सर्वोत्कृष्ट रूप में निर्धारण 'उत्तर' है।' प्रश्न-निरपेक्ष उत्तर का यह स्वरूप उत्तर अलङ्कार नहीं माना जा सकता। प्रश्न के साथ यदि वस्तु का सार-निर्धारण हो अथवा कम-से-कम उस निर्धारण से उसके मूल में किसी प्रश्न का निश्चय भी हो तो वह सार-निर्धारण उत्तर का स्वरूप माना जा सकता है । शब्दालङ्कार प्रश्नोत्तर के स्वरूप के सम्बन्ध में भोज ने यह धारणा प्रकट की है कि जहाँ पद से वक्ता के कथन में पर्यनुयोग का उद्घाटन किया जाय अर्थात् उसके कथन में 'प्रयुक्त पदों से ही दोष दिखाने की चेष्टा की जाय, वहाँ प्रश्नोत्तर अलङ्कार होता है। ___ मम्मट ने रुद्रट की उत्तर-धारणा को ही किञ्चित् परिष्कार के साथ स्वीकार किया। उत्तर से प्रश्न के उन्नयन की धारणा तो उसी रूप में स्वीकार कर ली गयी; पर प्रश्न के साथ उत्तर के निबन्धन में थोड़ा परिष्कार किया गया। मम्मट की मान्यता है कि एक तो उत्तर में प्रश्न और उत्तर का असकृत् अर्थात् अनेक बार निबन्धन होना चाहिए; दूसरे, प्रश्न के साथ उसका दिया जाने वाला उत्तर भी असम्भाव्य अर्थात् विदग्ध जनोचित होना चाहिए। कहीं एक प्रश्न तथा उसके एक उत्तर का निबन्धन हो जाय, वह बहुत चमत्कारजनक नहीं होता; पर यदि एक स्थल पर अनेक प्रश्न क्रमश: आते जाते हैं और उनके उत्तर भी निवन्धित होते चलते हैं तो उक्ति में विशेष चमत्कार आ जाता है। ऐसे ही स्थल में मम्मट को उत्तर अलङ्कार अभीष्ट है। किसी प्रश्न को सुनकर सर्व-साधारण के मन में जो उत्तर आ जाता है, यदि वही उत्तर कवि के द्वारा निबद्ध हो तो पाठक के मन में कोई चमत्कार उत्पन्न नहीं होगा। अतः, उत्तर का असम्भाव्य होना भी वाञ्छनीय है । रुय्यक, विश्वनाथ आदि की उत्तर अलङ्कार के सम्बन्ध में यही मान्यता है।४
जयदेव, अप्पय्य दीक्षित आदि ने उत्तर के स्वरूप में नये तत्त्व जोड़े हैं।
१. पदार्थानां तु यः सारस्तदुत्तरमिहोच्यते ।-भोज, सरस्वतीकण्ठा० ३,३३ २. यस्तु पर्यनुयोगस्य निभेदः क्रियते पदैः।
"तं हि प्रश्नोत्तरं विदुः ।। वही, २,१४८ ३. उत्तरश्रु तिमात्रतः । प्रश्नस्योन्नयनं यत्र क्रियते तत्र वा सति ।
असकृद्यदसंभाव्यमुत्तरं स्यात्तदुत्तरम् ।।-मम्मट, काव्यप्र० १०,१८८ .४. द्रष्टव्य-रुय्यक, अलङ्कार सू०७४ तथा विश्वनाथ, साहित्यक. १०,१..